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________________ ५१८ पद्मावतीची अमराजैन ग्रन्थालय बीकानेर से १४वीं शताब्दी के उत्तराध में जिनप्रसूरि द्वारा लिखित एक छोटी सी रचना पक्वावती चौवई मिलती है। रचना जन साधारण में धर्म प्रचार और शील निर्माण की दृष्टि से लिखी गई है। रचना ३७ छंदों में लिखी गई है। पद्मावती बीपोटी रचना होते हुए भी बड़ी सरस तथा कोमल की पदावली से पूर्ण प्रासात्मक रचना है। रचना में पद्मावती देवि का गुणगान है। पद्मावती देवी चक्रेसरी देवि, अम्बिकादेवी आदि देवियों का वर्णन कई चनाओं में काव्य प्रारम्भ करने के पहले मिल जाता है। अम्बिकादेवि की मीति पद्मावती देवी मी जैन समाज में पूजी जाने बाली देवियों में है है। रचना में कवि ने चौपई हद का प्रयोग किया अत: यह चउes हद प्रधान कृति है। कवि प्रारम्भ में ही पद्मावती देवी की तथा पार्श्वनाथ के पद कमलों की वंदना करके पद्मावती देवी को प्रसन्न करता है: feft for are अवधारि करि कावहु सिरि मावइ देवि (1) मासमा यस पैक मसलि संघ विच किनारण इसलि कर निम्मल म भगवन, परमरवि मह होहि पन || वालवरल ड लोवन विविन्न इव वनइनि · ft सय बस्ती हर विहत्यि वारस विश्व हि हत्थ फुल्का पक्कि बाल दिति दिसि पसरति ककराल (२-४) पदमावती देवी के स्वरूप वर्णन में कवि ने उसके आभूषणों और परिधानों -प्रति कि नाइटा सा अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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