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________________ ५०२ जिनदत्त वउपर एक कथा प्रधान कृति है। रचना में घटना सूत्रों को कवि ने इस प्रकार संजोया है कि पूरी रचना में कुतूहल आद्योपान्त विद्यमान रहता है। काव्य की दृष्टि से, छंद, क्या, तथा वर्णन विधान की दृष्टि से रचना का महत्व अविस्मरणीय है। क्थातत्व का क्रमिक विकास रचनाकार की प्रध दक्षता का परिचायक है। विविध घटनाओं का समावेश, अति प्राकृतिक तत्वों के द्वारा रचना में कौतूहल वृधि तथा रचना का वर्णन शिल्प बौपन्यासिक आनन्द का जिनदत्त कापड में जिनदत्व के सम्बन्ध में एक चरितमूलक लम्बी कहानी है जिसमें जिनवत्त के जीवन का अथ से इति तक का वर्णन विवरण है। रचना के क्या माम के अति सारंग का अध्ययन कर लेने पर ही साहित्य की दृष्टि से प्रस्तुत कृति का सम्यक मूल्यांकन किया जासकता है। विधायक है। लंबू देवीय के परत क्षेत्र के मगध देश में स्थित वसंतपुर के राजा द्रवेयर के जीव देव नगर सेठ थे। उनकी पत्नी जीवंजसा के जिनेन्द्र की आराधना से जिनवन्त उत्पन्न हुए। जिनदत्त बचपन से ही विद्याव्यसनी थे। अतः विलास की ओर उनका ध्यान युवा होने पर भी नहीं गया। वह उदासीन न रह जाय इसके लिए farera को लौकिक राम रंग में डुबोने के लिए उसके माता पिताओं ने उसे मारिज की संगति में छोड़ दिया। उनकी संगति से एक दिन काठ की बनी एक स्त्री को देखकर जिमदत्य के मन में विवाह की कामना जागी मीर माता पिताकों मे असीम प्रसन्नता है जिनदत्व का विवाह सम्बापुरी के बैठ बिमल की पुत्री विमसमती से कर दिया। कुमारियों की संगति में पड़कर जिमत्व विवाह के पश्चातु ११ करोड़ रुपये हार गए। यहां तक कि मिठी केक ने दिए। यह देख जिनस को बड़ी चिन्ता हुई कमाने के लिए बम्पापुरी के नाम से वशपुर धनिक सेठ के साथ विदेश में कान के लिए जहाज पर चढ़ गए। वहीं से ने fe के धनबाद की पत्नी विजयादेवी की पुत्री श्रीमती एक भयानक व्याधि से पीड़ित थी।मध्य रात्रि होते ही उसके पेट से एक भयंकर के एक निकलता था जो राजकुमारी के पत्र जो भी होता उसे सा जाता था । अतः राजा
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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