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________________ यह रचना भी प्रकाशित है।' - मंगलकलम चउपह.. १४वी इताब्दी की एक महत्वपूर्ण कृति है मंगलकलस कपडारचनाकार है सर्वानन्द सूरि। रचना का दो की दृष्टि से पर्याप्त महत्व है। रचना अधिक लोकप्रिय हुई हो यह नहीं कहा जा सकता क्यों कि सहायक सामग्री में इसका उल्लेख नहीं मिलता। भाषा की दृष्टि से भी रचना उल्लेखनीय है। रचनाकार ने प्रारम्भ में एक वस्तु हद दिया है फिर दोडों का गम है और फिर वउपई का। पूरी रचना एक चरित काम है परन्तु पूरी कृति के उपलब्ध नहीं होने से इसके सम्बन्ध में अधिक विचार नहीं किया जा सकता। रमाकार का अपना परिचय रमा में मिल जाता है। रचना एक वरित काव्य है इसकी पी कवि ने प्रारम्य ही स्पष्टीकरण कर दों की दृष्टि से भाषा की दृष्टि से, तशा विषय की दृष्टि से रचना का भूल्यांकन करने के लिए कुछ उद्धरणों को देखा जा सकता है। रचनाकार पहले दोहा द में श्रोताओं को सावधान करता है: (दूना) रलिय रसात निष्ठा मंगलकसम चरित्व पक्षिा पाविद मा करी पुनित चिन्तु (1) रचनाकार ने स्वयं अपना परिचय भी काम किया है। यह मानन्द इरि कौन है, यह बात निश्चयपूर्वक ही नहीं कहा जा सकता क्योंकि बस्त भी एक पानाथ चरितकाव्य धाम मे शो और एक सानदरि के चन्द्राम काव्य रचना है।' पर एक बाद पूरि ीं पताइबी के बारंग मी पो मी . am थक सामन्द मुरि उल्लेख मिलता है। १-बढ़ी। नवरात्री भाग ...श्रीमोहनलाल दुलीचंद देसाई।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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