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________________ LAभद्रा सती चम्पदिका। 388ठकठळक १वीं शताब्दी से लेकर १५वीं शताब्दी का कई राम और चरपईसंशक ऐसी कई रचनाएं मिलती है जिनमें सतियों के चरित को प्रमुख विषय बनाया गया है। ऐसी रचनाओं में मुभवाती चतुम्पविका एक महत्वपूर्ण रचना है। सतियों के सम्बन्ध में यो पर्याप्त माहित्य लिखा गया है।पर इसकी परंपरा प्राकृत और अपश से ही चली आ रही है। सुभद्रामती बम्पविका वीं शताब्दी के उत्तराई की रचना है। यह भी संभव है कि इसका रचना काल वीं शताब्दी के प्रथम दक्षक का उत्तराईध हो। उपद नाम से अभिहित अब तक जितनी रचनाएं मिली है उनका प्रमुख चौपाई ही रहा है। ठीक उसी प्रकार सुमद्रासती बतुभ्यादिका में चौपाई छन्द है। चतुष्पादिका मा उपइ की परंपरा पर पहले विचार किया बाबुका है। सुभद्रासती चतुभ्यदिका की मूल प्रति माहटा की ग्राम विद्यमान है जो उन्ने जिनप्रभसूरि की परंपरा संग्रह पुस्तिका में से प्राप्त हुई। यह रचना उन्होंने प्रकाशित की कर दी है। पूरी चतुष्पदिका Riदों में पूरी हुई है। मतियों का उत्कृष्टशील इन कवियों के लिए पी एक आ रहा है और जीवन के उत्थान में धर्म के प्रचार में और भी निर्माण में महत्वपूर्ण बल्ब समय कर ही इन काव्यकारों ने इन अनी रमाओं का विस्य बनाया है। रक्षा का विषय वार्षिक मा साभाविक है। प्रस्तुत बाप्पदिका में कवि ने सुभद्रा पारित की महत्ता का स्पष्टीकरण किया है। बाद सती सुभद्रा को अनेक कष्ट और साध्वानों ने साध्य करने को कडा गया वीस और धर्म निष्टा और प्रभाव के कारण उसने सब कर दिखाया। रखना का सबसे बड़ा महत्व किस अनेक तयार और क्या सूत्रों तथा इष्टान्तों का था वि ।कवि था को माध्यम बनाकर धर्म के सिद्धान्तों से भी सामने सना गाया विविध इष्टान्तों इवारा शील तय की रक्षा का m eme देवि दी अनुवीन वर्ष .. .... . बही।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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