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________________ ४८८ करावधाओं से भिन्न होने है। प्राचीन याकदि की द्रष्टि से इसमें कवि ने उत्तर प्रत्युत्तर की शैली का निवाह किया है। अत: कथा चलकर जो नेमिनाथ और राजुल के जीवन पर मेक राम कागु और चरित काव्य मिलते हैं उनकी क्या परम्परा में तो कोई अन्तर नहीं आता वह अव्याहत मिलती है पर कथा-सादिया अवश्यबदल सी जाती है जिन पर हम यथा अवसर प्रकाश डाला। नेमिनाथ चतुष्पविका की भाषा का अध्ययन भी अत्यन्त आवश्यक है। जैसा कि हमने उपर्युक्त विवेचन में देखा है कि यह एक 'विप्रलमगार का विरह मूलक कोमल काव्य है अतः शब्दों का चयन अत्यन्त मधुर है और पदावली अत्यन्त सरस है। कवि श्री विनयचन्द इरि स्वयं एक माचार्य होते हुए भी उनकी भाषा योजना क्लिष्ट नहीं है। उसका सरल और सुसंबद्ध एवं सुगठित स्वम कहीं पी काध्य को शिक्षित नहीं होने देता। कवि की पाका एकदम हल्की फुल्की और अभिव्यक्ति में अत्यन्त सादापन है मार्मिक और रस प्रधान अनुभूतियों को सरल अभिव्यक्ति देना मी एक कला है। मुक्तियां और कहान प्रस्तुत रचना में कषि ने सुन्दर मूक्तिया और कहावतों का भी प्रयोग किया है। ये कम इस प्रकार है:.. परइ मह गप सनि ताब, मयाणि न उमगा दिया जाब ल दद सवि इक्क बना लि मिलने पर सब इस पल हो जाते है। मला Ter बडा। अनु मरिदिक जड नयि हुँनि, एटिब मुहाली किन सहि (हे माथि यदि मोबक न हो बोयो मनुष्य को क्या हाली नहीं बनी। पन-विन पिया कि बाल नीर मात नान के बिना क्या जल पीना" पाषा की दृष्टि कृति एक विकास म स्पष्टतया देखा जा सकता है। नानी बसावीपूर्वीइ ग तत्कालीन साहित्यिक स्वरूप मिया wो पुराने ज्योवो मिली है। परन्तु उनके साथ पाश उनमें हिन्दी ma -- - . देखिए प्रमुख सच का अध्याय या परंपराएं और क्या दिया।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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