SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 510
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४७४ प्रत्येक महीने का वर्णन सभी के साथ संलाप सभी का उसे पुनर्विवाह के लिए सिलावन और राजुल का काव्य देश और उसकी एक निष्ठता सभी का इन्दर विवेचना है। अन्त में राजुल या राजमती नेमिनाथ को केवल-ज्ञान होने पर गिरनार जाकर स्वयं भी दीक्षित हो जाती है और अपना शेष जीवन साधना और मोक्ष प्राप्ति में उन्हीं के चरणों में काट देती है। ही मधुर वर्णन हुआ है। अतः इस काव्य की हम संवाद काव्य कह सकते कथा वस्तु मंडी है। इसी संक्षिप्त सी घटना को विवान कवि ने बड़े ही संमार से संजोया है। विप्रलंभ करुण और अंगार की त्रिवेणी बड़ी ही मार्मिक और विचित्रता की बुष्टि करती है। नायिका राजुल है और प्रतिवादक उसकी सी जो उसकी हर बात का प्रतिवाद प्रस्तुत करती है। दोनों के इस संलाप में वर्ष का प्रत्येक महीना इसका कारण बनता जाता है। अतः यह रचना बारहमासा है। वर्ष के बारह माह में किस प्रकार प्रकृति उसे विभिन्न विभिन्न रूपों में संवेदित करती हैं, बार पीड़ा पहुंचाता है, प्रकृति के अन्य उपादान उसे तड़पने को बाध्य करते हैं आदि सभी का बहुत है। बउपर काव्य की परंपरा अपभ्रंश से ही प्रारम्भ होती है। दोहा तुकान्त छन्द है। जय के दोहा और बौपाई छन्द बड़े लाइले है। दोहा ने हिन्दी को एक प्रदान की। दोहा मुक्तक काव्यों का प्रमुख था और चौपाई स्थानक प्रधान है। अतः कापड हंद की परंपरा का उद्भव है। में इस उम्द का खूब प्रयोग हुआ। अतः चढवई स्थानक प्रधान काव्यों के लिए प्रसिद्ध छन्द माना गया है। कब की परंपरा की भांति बारमाया की परम्परा भी महत्वपूर्ण है। Arcerer की परम्परा पर आने के अध्याय पर विस्तार में प्रकाश डाला गया है यहाँ से ही उसका परिचय दिया गया है। वास्तव में बारहमासी की है। सर्वप्रथम संस्कृत और प्राकृत में महरि यह परम्परा पी पी प्राचीन १- देवि प्रस्तुत ग्रन्थ का अध्याय ७ ।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy