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________________ २३ तो उत्तर अपने काल सं० १००० से ही हिन्दी का उदूभव स्वीकार करना होगा साथ ही संक्रातिकाल की रचनाएं भी हिन्दी के अन्तर्गत ही की जाएगी। सं० १००० से पूर्व की ठोस कोई साहित्यिक कृति उपलब्ध नहीं होती । वस्तुतः हिन्दी की ऐतिहासिक परम्पराएं निर्धारित करने के लिए हिन्दी की प्रादेशिक भाषाओं का मूल्याकन परम आवश्यक प्रतीत होता है। पुरानी हिन्दी की इन विभाषाओं में हिन्दी के प्रमुख रूप से सम्पन्न बनाने वाली विभाषाओं में प्रमुख है- प्राचीन राजस्थानी, जूनी गुजराती, बड़ी बोली मालवी, ब्रज और अवधी । ये सब विभाषाएं अपन से ही उद्भूत हुई है पर BT० धीरेन्द्र वर्मा का कहना है-" शौरसेनी आदि अन्य पक्षों तथा प्राकृतों के सम्बन्ध में भी मेरी यही कल्पना है बौरसेनी प्राकृत तथा अप से आधुनिक पंजाबी, राजस्थानी, गुजराती तथा पश्चिमी हिन्दी निकली हो, यह समझ में नहीं माया चौरसेनी प्राकृत तथा अपभ्रंश रसेन प्रदेश अर्थात् आजकल के ज प्रदेश की उस समय बोलियों के आधार पर बनी हुई साहित्यिक भाषा रही होंगी। साथ ही उस काल में अन्य प्रदेशों में भी आजकल की भाषाओं तथा बोलियों के पूर्व रूप प्रचलित रहे होंगे। जिनका प्रयोग साहित्य में न होने के कारण उनके अवशेष भन हमें नहीं मिल सकते। आजकल भी ठीक ऐसी ही परिस्थिति | आज बीसवीं सदी ईसवी में भागलपुर तक समस्त गंगा की घाटी में केवल एक साहित्यिक भाषा हिंदी है जिसका मूलाधार मेरठ बिजनौर प्रदेश की बड़ी बोली है किंतु साथ ही मारवाड़ी, ब्रज भाषा अवधी, भोजपुरी बुन्देली मादि अनेक बोलियां अपने अपने प्रदेश में मौजूद है। साहित्य में प्रयोग न होने के कारण बीसवीं सदी की इम अनेक बोलियों के नमूने भविष्य में नहीं मिल सकें। केवल बड़ी बोली हिन्दी के नमूने ही जीवित रह सकेंगे। किन्तु इस कारण पांच सौ वर्ष बाद यह कामा कही उपयुक्त होगा कि क्या बादी में गंगा की घाटी में पाई जाने बाली उमर मोठियां वही मोती हिन्दी से निकली है। उस समय उत्तर भारत की समस्त मकानों में बड़ी बोली हिन्दी गंगा की घाटी की के निकट रही होगी, किन्तु यह तो दूसरी बात हुई। ' mega: इससे स्पष्ट होता है कि दिल्ली की भी सेनिक्ली सिरहिन्दीका का भाग)पाद-टिप्पणी न का
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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