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________________ बिल जिसी आपिम मुंवरि ई दरिसिपि निज नाभि मदन रहइ दृष्टीविक ही, विष घरइ तेइ गाभि विषकन अम जापिम, तापिम कुचफल लुवि सेविम तह तपी छाडी, वाडडी डालिम वि करपा कामिपि न कोलम विणु जिम रंक करि घरी लिइ र पाकिषि, पाकिणी मरमि निक विपतक विषम तथडी जांण्डी परिहरि बैठ ईन पी पुष भान, धान कु जब नई देउ अमि अगानि साची रची रची प परिगड तिम किरि जिम काफिम दाफिम विहा तू मूढ सार वचन अगाडी या काडिया जिन मुख सीम नेउर कृषि पगि लागला लाग लाभ्यां लहई कीम' वस्तुत: कुल ५३ कड़ियों के इस काव्य में कवि ने फाणु के शिल्प और क्या तत्वों २ नया मोड़ प्रस्तुत किया है। पूरा काव्य ही कवि ने इसी विषम शैली एवं विकम वस्तु में लिया है। पूरी ऋतिनिवरस में सराबोर है। काम की प्रत्येक पंक्ति में आतर यमक मुत्रमा बर्षिय हुमा है। भाविकालीन हिन्दी जैन साहित्य अद्यावधि उपलाय कामों में बिना क्या के या पूरा का पलता है। बत्व पौष । मारी राय को कवि ने विविध प्रकार के दोहा दो प्रकट की सारी का वियोम वन करने में कविका पन दूब रखा है। क्या इसी बरा प्रकाराबरी की विशेषताओं का वर्णन मी कर दिया है। मामा अत्यन्त और प्राणालि है।इस प्रकार नारी निराम काम एक मौलिक रचना । - 1. प्राचीन भाग. गडेना,...
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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