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________________ मृगमद मयवट कुमम भार सिरितिलउ सरंगी नयपाहि काजल रेह वयणि बोल सुचंगो *चण कुन्डल हारदोर मणि मउड सिंगारी पंचकुमर पठहि गर्यदि व्यय बयसारी । वर्णन की ध्वन्यात्मकता काव्य को नादात्मक बनाती है।वसंत वर्णन प्रासादिक बन पड़ा है। यादवों के साथ पान्यवों का कीड़ा विहार वर्णन बड़ा स्वाभाविक है। कवि ने फाय काव्य में नृत्य क्रीड़ा और खेलने की मिया को बड़ा महत्व दिया है। सः फाग को मधु रितु का उल्लास प्रधान काव्य नामदेना सार्थक हो जाता है। गंगा यमुना के अंतराल में जाकर कुलगिरि पर्वत की बनश्री का वर्णन मधुरित. वर्णन के क्रोड में करता है। अंतराल जैसे तत्सम शब्दों का प्रयोग उल्लेखनीय है: तउहथिणार सगग तल्ल उच्छव मइजाइ इणि अवसरि किरिकोड धरिउ आय रतिराइ तर तिहि मास वसंति राइ आइसि पर लोया जादव पाडव कुमर सवे खेलइ सुपमोया खेल खेलत रायमर अंदेउरि जुत्ता मंग जबाणि नब अंतरा लि कुहागिरि संपत्ता एक मुगिरि रलियावण बनव वसंत पडूती बनराजी राजी वाणि परिमल बिया बानो बहे परिमल बिया बहूत बुद्ध रविरार पठावळ सह गहगह सबल लोर साहि मिरिवाणि भावित किवि सुरवर किषिवास केषि दूर बाई किवि बदन कप्पर गधि बिसि महल माली किवि वीपी मब असम के-विमुंबइ वर मालहि किवि का रसि रमा केवि वा बरतालहि किमि नाबा नरम कैवि कहाधिहि फागों किवियतिवनमामि अडियवर रामो जातीय कामताप्राचीन काबाडामा सरा०४५-४६ - - A
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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