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________________ ४०५ अंजनि अजय वैवि नयण पत्र वेलि कपोलि मोती लगाउंक कन्नि मुखि रंगु तंबोलि कंठु नगोदर फुल्ल माल उरि नवसर हारो करेठिय कैकम रयण वलय मुंद्रडिय गवारो वसु कडि कंकण चगृचरियमवमन वाजते वरमिहिनेउर रूप मुबई महि आवत उज्जेति १ ( खितीय कामु ). ठठठक सीसह मोतिय जालिय वालिय कंम देह उमटि कीधी क्यमिहि नयविहि काजल रेह कन्निहि वेसि कुंडल चैनल उरिवरि हारू कंठि नगोदरू करठिउ करि ठिउ कंकण भारु कडिहि परोलिय पहिरिय गहिरिय गुण गणिवाल a नेउर कप स्पभुव करs विषाल इस प्रकार दोनों कृतियों की फागु रोला छंदों में है क्या दिवसीय में बीवर अनुप्रस मैं हर एक पक्ति में कवि की अन्तर अनुप्रास बैली का यम प्रधान शैली के कुछ उदाहरण देखिय: २ १- मधुकर सेविय करुनि तरुणिय जिम तुम चंद २- एक न परनिय कवि ईगड मौवनु जाय ३- केतु को ४ ५. इसी सरायक पंक्ति को देखा जा सकता है। भाषा और भाव प्रवाह में पर्याप्त साम्य है। प्रथम यवक प्रधान दोहा चमत्कार है। बीतर अनुप्रास नुक कर जमुदा हिंडोला रमर मरमर किरि निर मोल विवि हरति वरति दानु सदे १- चीन का संग्रह: डा. वाडेवरा ० ८०-११ बड़ी।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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