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________________ ३९६ कृष्ण की स्त्रियों द्वारा जल क्रीड़ा में नैमिनाथ को विवाह के लिए उपालंभ व कटु शब्दों का वर्णन कटाक्ष व राजुल का रूप वर्णन आदि स्थलों का वर्णन मी पर्याप्त सरल व सरस भाषा में है: अहे पाणुमती अनुरूपविणि सत्यमामा पभणेइ अहे नीरसो नीठरो नेमि जिषु पाणिग्गहणु न कोइ अहे कुल केस मृगनयणि रा मांग भरवि सिंदूर बडे नयण कडवे आइनइ मिलि सवि सामल वीर अहे करहि करहि अहमद के कैसे ताणं दि अहे कार्ड नेमि नर्युसको एक रमणी न करती अ सभामा इम बोलए मोरिम बस्नु काह अहे रूषि रंभा सामी तोलियइ अवर महीअल नाहि अहे हंस गमण मृग लोयणी बंद बयण सजवाल अहे घूमह विणु नहु पामियइ उग्रसेनि सुकमाल अहे साबसलखन राजल रूपि नहीं अनुनारि अहे के सावरतीय ब्रहमा के गवरी तिवरारि --- पाभिग्रहण के समय नैमि का रूप और पशुओं के कण क्रंदन के समय उसकीका स्म स्थिति के स्थल भी उल्लेखनीय है। वनों की अनुप्रासात्मकता और प्रवाह विवेक इष्टव्य है: अहे के इ ईड के चंदु के हर अरु मान अ ff विसेस अवि दिवि तम नंदान बड़े बाल मबक्से राइन जोवर प्रिय भावंड अड़े रहनार गठिया मेंमितोरनिवेगि पत म बाविय त्रावक डाक मूक बल्कि नीसाने पाठ मरमर मेलिना बाजन राज
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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