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________________ ३६४ के आधार को स्वीकृत किया जा सके और फागु काव्यों का सही मूल्यांकन हो । इन फागु बंध रचनाओं की परम्परा चलती तो रही, लेकिन यह बहुत ही शीघ्र छोड़ भी दी गई और अव्यवहारिक समझी जाने लगी । श्री चन्द शमी ने लिखा है- अनेक फागु काव्यों को उद्धृत किया जा सकता है जो स्पष्ट घोषणा करते हैं कि प्रास यमक शैली फागु काव्यों में सामान्य रूप से प्रयोग में नहीं लाई गई। युग की पीडित्य प्रदर्शन की प्रवृत्ति एवं अंशत: afe के कारण यह विशिष्ट शैली अपनाई अवश्य गई किन्तु आगे चलकर अब तक प्राप्त अंतिम फागु के निर्माता श्री राजहर्ष तक आते आते यह शैली शिथिल ही नहीं हुई जति छोड़ भी दी गई। अतः इस शैली को आधार मानकर फागु की परिभाषा बनाना किसी प्रकार समीचीन नहीं। ' जो भी हो, इतना अवश्य निश्चित है कि फागु मधुमास की आह्लादकारी गेय रचना है। फागुरचनाएं दो प्रकार की मिलती है जैन और जैनेशर बर्थ ब्राहमण परन्तु जैन फागु रचनाओं का शिल्प एक वैचित्रय लिए होता है। कई रचनाएं तो ऐसी मी देखी गई है, जिनमें जैन मुनियों के संयम श्रीसे दीक्षा ग्रहण करने पर कामु की ही तरह रास या क्रीड़ा होती है। जैनेतर विद्ववानों ने फागु अधिक नहीं मिलते है और उनका विल्प भी साधारण होता है। जनेवर रचनाओं के अधिक नहीं मिलने का कारण उनकी असुरक्षित रहना त्या विभिन्न आक्रमण की ही हो सकते है। या यह भी है कि वे किसी ही थोड़ी संस्था में गई हो। जैन फागु रचनाओं के विप विधान में एक विशिष्टता यह है कि उसमें श्रृंगार के साथ जमका सम समय है। मार का परिहार उम में करना बहुत ही कठिन स्थिति है। इन रास को यदि विरोधी रस में पी कहें तो भी इनका सरलता से निर्वाह कवियों की अभूतपूर्व प्रतिभा पर्व विदुबत्ता का सूचक है। इन रचनाओं में जीवन का स्वाभाविक और स्वार्थ विजय है। १. दे० श्री यन्त्र वर्ग का विरि स्थूल व फागु-लेख ना०प्र०प०वर्ष ५९ अंक १५०२४ २० के०मी यार सम्पादितवत विहार प्रस्तावना ५० ३८ ३- बडी इथ वही पृष्छ ।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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