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________________ ३१४ तथा कथाकी पाति जनउंचि पर विजय पाने वाला प्रस्तुत रास है जिसको हने में बड़ा आनन्द मिलता है।साहित्य का उपयोग यही है कि वह व्यवहारिक जीवनके लिए निरन्तर उपादेववहितकारक एवं मार्ग प्रदर्शन कसे बाला होकविने मुनियों या बाबको का कलियगी कायाकल्प बताया है। उधरण उल्लेखनीय है : पुपिबर मरि मागला ए, पगि पगि करइ विरोध एका भारगि अंतर प, माणई अतिथि अबोध कोहि लोहि माहि मोडिया ए, पारगि नवि बालेति आप प्रवेमा तप करई,ए, परनिंदा बोलंति लोक दबा मन रंजिव २, वणि धरई वय राण भागा भरम इ मारिई ए, नवि वीसइ अनुराण पंच विषय गीता नहीं ए, निषि हिंच्यारि बाय वह हरई संजामि करीर, जीवन तपउ उपाय कुटिल भाव श्रावक हुब र हीड़ा अति निरभाव समाकित पर मुंहड़ा कहइ ए बल्लाबह बहुपाव धरि बरसन मडिकी कई ए, विषण करइ पार बरहम देखीव कविनगा र यस मनि बकार पुरु उपदेश ही नवि पीजी पाभर पापिय गरि गाइ एमी ममि पीति (स्वपि ( वस्तुतः पूरा रामकलिकाल का स्वम विश्न करता बहा गया है अगर औ रख की दृष्टि से रमा साधारण परन्त वात, शिल्प, भाषा, और मध्य विका की मिट मत्वा महत्व है। रक्षा की भाषा में अपर के प्रयोग इंटने पर ही निराजस्थानी था गुजराती के जनद भी मिलो है। पर पूरी रक्षा को सरल हिन्दी की रचना कहा जा सकता है। कवि ने मशदा वित्र को नेक नियों उदासों इटाबों और वावों इवारा स्पष्ट किया है। यह उधरम राग महत्वपूर्ण
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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