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________________ ३१२ -: कुमारपाल रास : 2 १५वीं शताब्दी के पूर्वाध में विरचित रास रचनाओं में एक प्रसिद्ध रचना tage विरचित कुमारपाल रास है। इस रचना का सम्पादन ढTO भोगीलाल साडेसरा ने किया था और पुनिजिनविजय नेइस रचना को प्रकाशित किया। प्रस्तुत रचना एक ऐतिहासिक काव्य है जिसका प्रमुख विषय राजा कुमारपाल के वैभव, राज्य, उदारता, प्रदर्शन तथा संघ वर्णन है। प्रस्तुत रास्की अंतिम कड़ी में कवि देवप्रभषि का नाम मिलता है। हिसाक्ष्य में भी देव प्रभवनि का नाम मिल जाता है। पाटन के संघवी मुहल्ले के जैन ज्ञान भंडार की ० १४३५ में लिखी हुई पार्श्वनाथ चरित्र की प्रवास्ति में सोमलिक सूरि के विषय मंडल में देवप्रमगणि का नाम मिलता है। काव्य की पुष्पिका से होता है कि इसकी नकल सं० १५५८ के चैत्र शुक्रवार को की गई या मी स्पष्ट होता है कि मंडन रिजो मुगृधान बोधि औक्तिक के लेखक है, देवप्रम के समकालीन थे। क्योंकि मुगृधावबोध मौक्तिक का रचना काल सं० १४५० है अतः यह अनुमान किया जासकता है कि ड्रेस राम की रचना बाद के प्रथम दशक या दिवतीय व मैहुई होगी। पूरी रचना एक सरस काव्य है, कवि के पदातिर और काव्य प्रवा मैं कहीं भी वैचित्य नहीं है। ४३ कड़ियों में पूरी वाहनाना हुई है। रचना की व उस्लीय है। कवि में काव्य का प्रारम्भ ही महावीर, गौतम स्वामी, सरस्वती, पाली की विनय नमस्कार द्वारा किया है। कुमारपार रहे। उनके था। कुमार पाल की साधारण दोना है राज्य का प्रभाव योजन की मंति मुक्यों ने वो क्या यह पवियों तक मे अपनी पारस्परिक कमावता छोड़कर सर्वत्र अहिंसा का साम्राज्य स्थापित किया पड़ों में पेरमो, हिरन, बारहवींया, यूजर बी आदि को १- भारतीय विद्रवाः ० निजिनविजय, भाग १९८० ३२३-२२४ १- बड़ी - बड़ी पृ० ३१३
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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