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________________ २९४ सर प्रववदि मोहरी य श्री लालचंद मावी ने इस छंद कोरासछंद की संज्ञा दी है। जो संभवतः राम्र रचनाओं के लिए एक छेद विशेष हो गया था। श्री के का० शास्त्री ने इस छेद 露 १३ और १६ १६ १३ की को मिश्र छेद कहा है तथा इसमें १६ विपदियां बहाई है।' इस छेदों के अतिरिक्त दोहा बौपाई छेद मी मिलते हैं। Te महोत्सव के लिए लिया गया है अतः गेयता उसमें विद्यमान है। भाषा के संबंध में रचना का महत्व साधारन है। लोक भाषा के प्रवाह में कवि ने "ब" जैसे शब्द का प्रयोग- इइ कमाली कालपुडी लौकिडि मे लोकहि ये लोकिहि वाइय ब * किया है। राजस्थानी में बोलवाल में आज भी बूंब शब्द मिलता है जो संभवतः जोर से चीखने के लिए प्रयुक्त होता है। यह भी सम्भव है कि यह शब्द विदेशी हो । नयेदों में- कमठ, वाय, वरमाल, बनगर, पावजिन, अनलकुंड चिंतामणि हिमगिरि धवल, बाबिल, उपवास, मूकी बीजी, पुकति, प्रीति, चिरकाल विमल आदि अनेक शब्द मिलते है। अतः इन शब्दों मावा में नवीन शब्द के म की क्स स्पष्ट होती है। १ बाबू के इन्हीं काव्यों की परंपरा में इसी वस्तु के दो विस्तृत राड काव्य मिलते है। इन काव्यों में दानवीर परियों की मानवता का वर्णन है। दोनों का मनीष दे किया मादा का पाया और छेदों कोटि ने दोनों रा महत्व पूर्ण प्रबन्ध है। *+ Buyers" --* r*4* - २०११ - 吉加 प्रकार की क्या संघ वर्णन है तथा २- (इसके प्रथम पृष्ठ का) परमेश्वर बाली रामः श्री ला०म० गांधी, १०२ । १- प्राचीन मु०का०सं० श्री दलाल, ३०५९ २. प्राचीन का०० श्री ५०५ ३- आपना कवियोः श्री केल्काव्यास्त्री, ४०१५६-६०१ ४- प्रायका०सं० श्री प्राचीन वैर काव्य संग्रह श्री दास पवेन्डिक्स १० पू० ११। १० मी० १०
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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