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________________ २८९ पुग्यि एच रयण तहं हरिया, विषि कारपि तुइ सुय अवहरिया बि होइ निमितू वर बरा करेई मुलस सराविय ताम्या सुरु अल्लाई देवा भूमिवर बंदा गाम्ब हरिस विसाउ परइ मणि वाम्ब मुलय सपन्निव मा धारिताडियत्र पुण बाल विउइहि बाडिय सिलवा मलहावइ गाव, देवइ मन इम्भक हुइ ताम्ब कवि ने गयमुमाल का स्मशान में जाकर कन्नि तितिक्षा का वर्णन देखिए मोड महागिरि बुरण बज्ज पवतस्वर उम्मलम गग्य मुमरिनि जिणवा नेमिकुमार मय सुकुमा लेइ क्यभार किल काउगिंग साम्ब बारबि पसाणे, वारवा नयरीए वाहिर उजाये मि सु दिवस कवियर पेक्षा तिरिय जल पवालि दिना अम्ह धुंब बिनडियपरिणिय जेल, जमिनट तक कर जोया कठोर साधना में केवल मान का उपासक गप शावक की भाति कोमल गजमुकुमाल सौमित्र ब्राहमण के चिता में सेउडाकर अंगारे डाल देने से जल कर वहीं मस्त गे गए और निवाष को प्राप्त हुए नायक की यह साधना कवि ने की ही अध से बर्षित की. "बावा मनाला पिाकरे, वाम र नारा Nिews उमाविक मारमा दिwि पिसि विवाद विव बरपान न परमिरि RE, Mइम कामा बस्ता अबरामद किरनिविय या वा विधिरनिद्र माया पनि बनाए निमा बार अंडमाडिषि उमाशिमा पानि म बिगा। स न लिने न रहदेव स्पष्ट क्यिा है। कवि ने यह पति प्रधान राम मामा की या प्रधान माना की प्रति कि रा नाम, जनम करने और बाद मन होने की वा - रावस्थान पापी वर्ष पद (R ). 1 .
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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