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________________ आदिकाल का यह नाम शुक्ल जी ने इसलिए रक्सा है कि इस में ऐसे वीर गाधात्मक ग्रंथों की प्रचुरता मिलती है जो स समय जनता में पर्याप्त रूप से प्रचलित रहे होंगे। उनके अनुसार वीरगाथा काल के प्रसिद्ध ग्रंथों का वर्गीकरण प्रमुखतः दो श्रेणियों में किया जा सकता है.. १- अपश पापाः इस भाषा में लिये प्रमुख ग्रन्थ है: (1) विजयपाल रासो ( मल्लसिंह कृत ० १५५) (हम्मीर रासो (रंग धर कृ . १५७) (8) कीर्तिलता और (कीर्तिपताका (विद्यापति कृत सं० १४०४) २. देशी भाषा: देवी भाषा में आने वाले मध : (५) मान राणे (लपति विजय कृत संont-१०५) (6) बीमादेव रामों (मरपति ना . ) प्रश्वीराज रासो (कदवरदाई - ११५११४) यमन्त्र प्रकार (भट्ट दार . १९१५) (१) बमका वन्द्रिका (माकर कवि १४०) (.) परमाल राणे (मागका मूल मानिक ) ( खरों की पहेलिया (10) Myड (श्रीधर Far ) () विमापति की पवावी ( उपस अन्धोखरों की पोझिया और निड्यापति की पदावली को छोड़कर शेष सभी प्रबों को उन्होंने वीरगावात्मक माना है। बिद्वान बीमलदेव राों को वीर मापारमा मन्त्री स्थान कर गारिक बनाने है। किन्तु स जी में बीरमाथात्मक प्रकृति की प्रदरता और प्रभामा गरब की बीरगाथा का मा है। किन्तु इन रचनाओं का भी वियानोनिनिषिय, डा. सारी प्रसाद द्विवेदी
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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