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________________ २८४ " जागा मई बच्छ बाली राइमई बहु गुणिहिं विसाली उग्रगण रायं गहि जाइय, स्व सुहाग साणि विकाय जसु धणु केस क्लाबु हलंत, नीतु किरण वालुव्व फुरंत दीes दीडर नयण महंती नं निप्पल लील सि वय कमलु नं छन स िमंडलु दिक्ववि भुलला चना मंडलु मोहे, कंचन कलसह लीड न देई reas ures म सरल बालय के विगिजय, नं० बंपर लय गयवणि साजिय जय वस्तु परिक्षण उत्ताखिय नरइ गइयस कत्थ विनातिय इय चिज विणु करिह सा बाल वाविय मेमकुमार देखि (गुपस्थिय ) जायन मेलाविय (४१-४५) सौन्दर्यवर्मन पर्याप्त है। तथा सौन्दर्य उपमानों में भी मौलिकता है। रूपवती राजमंती की जीवन भर की साधना व्यर्थ हो गई, राजमती का सारा अंगार तिरोहित हो गया उसकी कति कथन में बदल गई पर उसने धैर्य नहीं फोड़ा। उसमे बोचा ऐसे दिव्य पुरूष पूर्व के वल्लम कैसे हो सकते हैं? कपण रस में डूबे हुए राजमती की वामी बढी दयनीय स्थिति की योतक है। अंत में राजमती व मिनाथ के बाद गिरिवार जाकर दीवित हो केवल पद को प्रा करती है निमुनि राजनई चिंव चिचि यह है नई न परवड नेविकुमारु जो विमान कपि करि पडिक कुरूवि मी जि जो कि इस हो कि ईडियन बल्ल बुमरवि चिखंड राइम मेनि मारिष विक इस युति पय मदिनिन्छ लोग धक्क अन विजवर बारहमह दगड वरमचिम पाराविक संत दिन कति योजक भाव के कुछ बो यो म पानि सावय साबिम म पनि रोजिन नयनानिय
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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