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________________ २७३ की यह रास उल्लास पूर्ण गेय तथा नृत्यमलक अभिव्यक्ति है, जिसे कवि ने arotener से संवारा है। प्राचीन काल से ही इस ऐतिहासिक स्थल का महत्व रहा है। रचना का रचनाकाल तेरहवीं शताब्दी का छत्तराध सं १२८८ है । प्रस्तुत काव्य का नवीनतम संपादन व प्रकाशन डा० हरिवल्लभ पायाणी ने किया है। रेवतगिरि रामा नाम का एक ग्रन्थ और भी बना हुआ है। इसकी प्रति पाटण के संघवी पाड़ा के भंडार में है। जिसकी भाषा को श्री नाथूराम प्रेमी प्राचीन हिन्दी बतलाते हैं।' इसकी रचना वस्तुपाल मंत्री के गुरु विजय सेन षि ने सं० १९८८ के लगभग की थी इसमें गिरनार का और वहां के जैन मंदिदों के जीर्णोद्वार का वर्णन है। रेवंस गिरि का परिचयात्मक उल्लेख गुजराती के विद्वानों ने भी अपने ग्रन्थों में किया है। उसकी कथा वस्तु शिल्प, नायक तथा अन्य वर्णनों का अध्ययन करते समय राम का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्व पूर्ण जात होता है। रेवंतगिरि रास प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है यहां तक कि इसकी प्राचीनता का उल्फे महापुराण में भी मिलता है। इसमें जिस करिव नायक के मंदिर प्रतिमा, व अन्य वस्तु सौन्दर्य का वर्णन किया गया है वे वैनियों के करी स्या है जिन पर अपने बाकी कृति नेमिनाथ है मेमिनाथ का हरिकृनेमिनाथ बलि है। ܐ प्रस्तुत रास में यात्रा वर्णन संचवर्षण तथा मूर्ति स्थापना वर्णन है रास की क्या व धार्मिक है। रात मे है या इसमें दी एवं मात्रा के महत्म्य का कुदर काम्यात्मक वर्ष है। इस काल के जैन राम्रों की विषय वस्तु में पर्याप्त १. सियाका इतिहासः श्री नामूराम प्रेमी ५० २६वि०स० १९०३ का संस्करण देवर भाषा कवियो : श्री का० शास्त्री व जैन गुर्जर कवियों: श्रीदेव २० हिन्दी के विकास में यह का योग: श्री नामवर सिंह ५० ११८
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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