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________________ है। डा. हमारी प्रसाद द्विवेदी रासक को मात्राओं का मानते हैं। प्रमाण में ये संदेश रासक का यह द - उद्धत करते है। "तू नि पहिप पिक्वेविण पिन उतिरिव मथर गय सरला इमि उत्तावली बलिय रु मगहर चलतिय चल रमण परि डिवि बिसिय रसमावति किंकिण रवयतिरि.' पर मदेश रासक के इस च की तुलना प्रस्तुत रास से बंद में मिलाने पर जबर दिसाईपड़ता है। दोनों की मात्रामों में पर्याप्त अन्तर है। इस रास द का शिल्प संदेश रासक के छेद से एक बम विन्न है। और सम्भवतः इसी भिन्नता के काल श्री के०का शास्त्री मे • इस प्रकार का मित्र बंध पूर्व देखने में नहीं आया लिख दिया है डा. विवेदी लिसले कि विरहाक ने अपमे वृत्त्यादि-गुब्बय में दो प्रकार के रास काव्यों का उल्लेख किया है। एक में विस्तारित मा दिवपदी और विदारी त्स होते थे और दूसरी में अहिडन्त, पत्ता, रड्ड और टोला मना करते थे। बात जब है कि प्रत राब इन्हीं दो प्रकारों हो, योकिदिवपी में भी मिलती है। पY TEET- पटक ma विआधार पर कवि की धार लिया बाबा और अब मानकर च ली गयी। मामाका परिकार :गोरखा लिपि गाव प्रकरण NITORोरि पर यीय कामारी प्रगद दियदी,.. सरोवर बाल्की मापी."
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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