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________________ विषय-प्रवेश हिन्दी साहित्य का बादिकाल स्वयं अपने में एक महत्वपूर्ण विषय रहा है। बाविकाला विवेचन करते समय सम्यक् शोध के अभाव में विद्वानों में इसकी उपलब्ध रममाओं की स्थिति को सदैव ही पदे की इष्टि से देखा है। हिदी चाहित्य के प्रति निबान इतिहासकार स्वर्गीय आचार्य रामचन्द्र पाल ने इस काल का वीरगाथाकाल नामकरण करके उपलब्ध कृतियों को स्थान दिया, पर पुरत पी के सामने सामग्री की उपलब्धि का अभाव, मगो बड़ा कारण रहा। यही नहीं इस काल में मध्यदेश के विभिन्न प्रदेशों में कोई भी प्राचीनतम रचना नहीं मिली, जिसके आधार पर स्थित थोड़ी मुलगी : सामग्री का प्रभाव, बोध की उपेक्षा या अन्य अन्तरंग बहिरंग प्रमानों की अनुपहिति के कारण माविकास का मान पटकाकी होबा गया। विद्वानों की इन कठिनाइयों कारव नागरी इस ओर विविध नहीं हो सकी। विभिन्न प्रस्चियों कारण इस का माल भी मिलि हरा पालन कोरंगी नाम काही प्रतिनिधित्व नही कर सास बहकाल स्वबोधापातों का काकी बना स यों और गति न होने से इस काम की अनेक महत्वपूर्ण लिया मित्राव हो गई। फिर भी इस बात का सम्यक्ष होने पर इसमें अनेकानेक व रत्न समारो को ऐसी विद्वानों की धारणा का धीरे धीरे पोय होता और का विकि यह धारणा परवीं बोगोंक ही प्रमाणित समयोपानी आधार पर हिन्दी साहित्य पादिकाल पर अपने विचार किया नासा । मिन्दी गरिय प्रारम्भिक कालको प्राविका मा यिा कश है।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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