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________________ २३० प्रचलित हुई कि जन मानस रसमय हो उठा, और मृत्य को लोग उपेक्षा की दृष्टि से देखने लगे यथा कर्पूर मंजरी में विचित्र बन्ध में ताल लय प्रकम्पन के आधार पर नृत्याभिनय करती हुई नायिकाओं का वर्णन मिलता है।' इन मर्तकियों की समबाहु समान आदि अनेक भिन्न भिन्न मुद्रामों का भी उल्लेख मिलता है। वस्तुतः ११वीं बताब्दी तक पहुंचते पहुंचते राम गेय काव्य" मात्र रह गया। क्योंकि इन गीतियों और बर्बरियों को ही जनसाधारण में अत्यन्त अधिक प्रचलित देखकर जैन मुनियों ने उपदेश का माध्यम चुना और ये वर्षरियां और नीतियाँ इतनी अधिक प्रसिद्ध हुई कि इनके नामों से विभिन्न छेदों का निर्माण हो गया। कालान्तर में बर्बरी और गीत नाम से स्वतंत्र छेद ही बने गए। अब जनता इन राम्रों को सेलने की अपेक्षा श्रवण करने में अधिक रस लेने लगी और इसीलिए श्रव्यकाव्य की उत्पत्ति का काल ११वीं शताब्दी कहा गया है।' आलोचकों ने इस कथन की पुष्टि भी की है कि इन्हीं उपदेश बहुल रासों के काल मेय राम केवल अन्ततः श्रब्य रास मात्र रह गए, मृत्य से नका संबंध सर्वथा विछिन्न हो गया। ११वीं शती तक तो रास रासक की यह स्थिति रही। पर डेम के समय तक जन मानस में राम को रूपक का रूप दे दिया और ऐसा लगता है कि तत्कालीन वस्तु स्थिति को देकर डी हेमचन्द्र में प्रेम काव्य के रासक को तैय are के एक मेवों में से माना है जिसका उसके ऊपर किया उद्धत और मित्र के तीन मेद थे। इन तीनों के जा चुका है। मन उन्होंने होम्बिका प्रस्थान, डिंग, भाषिका, प्रेरण रामाजी इस्की एक, गोष्टी आदि उपवेद कप १- साहित्यलाई १९५१ पर भी डा०दशरथ मोका का रासो के अर्थ का क्रम विकास- देव २- कर्पूर नंबरी ।४।१-११ का यह रव माथा रेहा विबुधा भवराउ दिति । दो मे परोपरं सानुडी हुवंति।। ३--इलाई १९५१ - रात्री के काक्रमिक विकास-लेव । ४- वही बैंक, वही लेख |
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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