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________________ २२६ १- रासक मसण रचना थी। २. इसमें अनेक नर्तिकार होती थीं। ३- यह उधत गेय उपक था। ४- अनेक तालों से समन्वित होता था। ५. इसमें एक निश्चित लय होती थी, तथा - कीड़ा करने वाले युगलों (लोहियों) की संख्या ४ तक होती थी। गेय रासक के विकसित स्वरूप को उस काल में "राग काव्या की संज्ञा दी गई थी। गैरमनी प्राकृत में भी रास साहित्य का उन्ले मिलता है परन्तु यह आधार युक्ति संगत नहीं प्रतीत होता उक्त समस्त विवेचन इल्लीसक, राम और रामक शब्दों के संस्कृत कालीन स्वरूप वर्ष और परिभाषा को समझने के लिए किया गया है। राम अब सि प्रकार कालान्तर में अपना बिल्व परिवर्तन करता गया, इसके ऋषिक विकास अध्ययन में युविधा हो, इसी दृष्टि में संस्कृत काल के प्रमुख विद्वानों के विविध उदाहरणों को प्रस्तुत करना उचित प्रतीत एमा। राम के संस्कृत काल में का बाप के चरित में रासका बलील विवेचन मिलवा बीमालीराम पयामि का उन्ले भी आar है। उसका मकानों हवारा उनके साखि प्रेमियों को, बिना विक मा बिपा, बालीक पब माने का उपाय गमवारीमा सम्बन्ध में मीकि उडमक इलीन बार पास नान प्रत्य विशेष इली शिवनमारास त्यावर ती नुत्य इन दोनों की १-मार प्रयोग राना विधिमा माना निवास स्म-मचन्नाकाव्यानुशन • ४४९॥ बारबराती हर लिटोबर-पी०एम.बी.पु.८० -गलागली को मालामन्यो विटामा कमीमवायली रा
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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