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________________ २०२ strouters age का गद्यकाव्य की ऐसी रचनाएं आदिकालीन हिन्दी गइय साहित्य का श्रृंगार है। हिन्दी साहित्य की प्रादेशिक भाषाओं में अनेक गय रचनाओं का प्रजन हुआ होगा परन्तु आक्रमणकारियों के कारण या सुरक्षा ठीक प्रकार से नहीं होनेथा शेष सामग्री एवं भंडारों की सम्यकू बोज नहीं होने से प्रस्तुत का लेख के पाठ से लेकर जैनकवि माणिक्य सुन्दर सूरि की रमा पृथ्वीचन्द्र बरित के बीच में गद्य काव्य मूलक कोई भी रचना उपलब्ध नहीं होती। अत: अवधी, मैथिली, ऐसी राजस्थानी, तथा ब्रज के भंडारों की सम्यकु शोध होने पर बहुत संभव है कि ४०० वर्ष के इस काल में गदूब काव्य की परम्परा का पोषका दले वाली और भी कई रचनाएं उपलब्ध हों। १ afreeTor गय काव्य शैली में लिखी अजेन रचनाओं में ठाकुर ज्योतिरीर के वरत्नाकर को नहीं बुलाया जासकता । अद्यावधि १४वीं शादी की जितनी भी जैन मय रचनाएँ १४वीं शताब्दीकैपलब्ध हुईहै उनमें कोई भी रचना ऐसी नहीं कि उनके मदद को रत्नाकर के मध्य के समय रखा जा सके। मैथिली के ठाकुर ज्योतिरीश्वर द्वारा किसी इस रक्षा का महम बहुत ही सर, काव्यात्मक प्रवाहपूर्ण है। बतः मध्य काव्य की परम्परा में इस रकम का रहेगा। वस्तुतः इस उम में वि प्रकारची की यह रचना उपलध है न सम्भव है उसी प्रकार की सुन्दर रमाके में अन्यनादेशिक विभागान मी उप हो। मय का यह विषय पूर्वका होच का विषय है। काव्य अथवा क्लबव के होने वाली इस कोन रमा का महत्व निम्नांकित कुछ उद्धरणों से सम्भवतः माना जा सकेगा। रमा प्रकाशित है और प्रसिद्ध ०१०, डी०लि०, रीडर हिन्दी विभाग, प्रयाग विश्वविद्यालय के नु से प्राप्न १- देखिए वरना ठाकू ज्योतिरीश्वर प्रणीता द्वारा कि १९४०० की मार या बाबू कि।"
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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