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________________ ११३ का उदाहरण मान लेने को लिया है। मित्रबन्धु गोरखनाथ का समय ०.४७ मानते हैं। कुछ साकृत्यायन रनो १०वीं बवाइदी का ही कहते है। इस प्रकार गोरखनाथ का समय निश्चित नहीं है और उसके नाम से उपलब्ध गदय कृतियां भी असंदिग्ध नहीं है। परन्तु गोरस्नाथ की कृतियों की प्रमाणिकता पर बालोचक विद्वानों ने कार्य की है किगोरखनाथ की प्रामाणिक हस्तलिखित प्रतियां .८वीं शताब्वी से पहले की प्राप्त नहीं होती और रचनाएं गोरखनाथ के नाम से प्राप्त है वे विश्वसनीय नहीं है। परन्तु इतना होने पर भी इसे अवश्य माना जावगा।कि गोरखनाथ की रचना आदिकाल के गद्य साहित्य में अपना स्थान अवश्य रखती है। वास्तवमें यदि गोरखनाथ की ये रचनाएं उसकी अपनी हों तो भी वे अपने मूल स्म में सुरक्षित है इस पर संदेह क्यिा जा सकता है।असंभव नहीं कि उनका प्राप्त सम गोरखनाथ के बहुत बाद का हो।वही कारण है कि बालोचकों ने अयभाया के बल्लभाचार्य के गद्य ग्रन्थों को ही हिन्दी के प्राचीन गड्गमान लिया है। जो भी हो, स्थिति इस सम्बन्ध में बहुत स्पष्ट नहीं है। गोरखनाथ की सिन्धु हिन्दी का प्रारम्भिक गद्य लेखक मानते है। गोरखनाथ के नाम से उपलब्ध होनेवाले मड्य के जन अवतरणों को श्री अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध नेवी अपने खिहास * गोरखनाथ के मान से उपलमय गय कहकर उद्यत स्थिा है। मामले ... आसपास का गढ़ माना। .- सो वा पुन संपूर्ण वर्ष बस्मान कर चुकी स मयी ब्राहम्न नि को युको, बरु मात्रा कर चुकी देवबा गुग पिसानि को संतुष्ट -न्दी साहित्य का इतिहासमा रामचन्द्र चुक्ता 2-मित्रक विनोदः माम" मि . .. -बापमाना: बाबरी अमरवादमाटाका राजस्थानी पाकमकी परंपरा-ब-बडी। -मिगन्धु विनोदःभाग :
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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