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________________ छोटे छोटे छोपक्थनों द्वारा हम गद्य की प्राचीनतम स्थिति का साल अनुमान लगा सकते है इस प्रकार विक्रम सं. ८५ में लिये इस कुवालब माला क्या मन्च से अपभ्रंश की परिवर्तित स्थिति और तत्सम शब्दों के बाहुल्य को स्पष्ट करने वाले इन प्रासंगिक गयाओं के गढ्य की परंपरा समझने में योग मिलता है। जसके बाद पुरानी कोसली का एक ग्रन्थ उक्तिव्य स्ति प्रकरण ११वीं शताब्दी का कवि श्री वामोदर शर्मा द्वारा लिखित उपलब्ध होता है। यह पन्ध बनारस और उसके बास पास के भाषा स्पों को समझने में योग देता है। तत्सम शब्दों की ओर क्षेत्री से प्रतिक्रमण हमें इस रक्ना में उपलब्ध होने लगता है। यह अन्ध रक बात यह भी सिद्ध करता है कि देशी भाषा में था कहानियों की रचना प्रारम्भ हो गई थी। यह मन्ध देशी भाषा के गद्म ग्रन्थों में अत्यन्त महत्वपूर्ण कृति है। इस ग्रन्ध के रमिता दामोदर राजा गोविन्दचन्द्र के समा पंडित थेबे काशी के राजकुमारों के शिक्षक थे। ग्रन्च का रचनाकाल सन् १९५४ है अतः पाषा वीं बतादी की बनारस के आस पास की देशी भाषा की ओर मुक्ने की प्रवृत्तिमा मईधी, या भी इससे पर्याप्त स्पष्ट है। प्रथों के कुछ उइधरण उदाहरणार्थ देखे जा सकते हैवाक्ति व्यक्ति प्रकरण में पुरानी कोसनी को देशी अपज कहते हुए कहा गया है कि दे वे लोकोक्ति मिरा अष्टमा यमाकरित सावी संस्कृत रविता बाध्यत्व मावि १० बाम इति निम्न कीज कि साध्वगा प्रियासमा वादा बाटा दावा सापटी पीनदी में बीवात्मा स्थिती गमावल्यावर : व्याकरण के नियमों में स्पष्ट करते हुए गय के प्रबुर उदाहरण मित इस - मामार वर्म हो पाग १. बापा बोट ..ई बार *-बारा वारि देता
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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