SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपने देवर, जेठ, भतार आदि के पुजार्थ को ध नबनों से देखती फिरती थी। गाणुरपि इस समय अधस्थल अथवा वैसालपरि की भाति हो रही थी। अध स्थल का मायक अचलदास बुद्ध भूमि में छा चॅबर सहित इस प्रकार का नाम वीर दिखाई पड़ता था मानो साक्षात् हम्मीर ही बैठा हो।दोनों ओर की सेमाबों की समरांगण में मोचीवादी तथा भीषण मारकाट के वर्णन कवि की पूर्ण, उत्साह पूर्ण ज्या गहन अधच सजीव अनुभूति के बिना। कवि ने बोधानों की वीरतापूर्ण भयंकर मारकाट के अनेकों साकार एवं रोमाचक विश्वबारे है। वर्ष की चित्रात्मकता तथा सजीवता कविसावला एवं गाहा छंदों में स्पष्ट दृष्टव्य है:. अब रसाबला बिहू डि कामावलीसर पूटिंग मी भनी अभी अनुलीसग सगा बली उघिर पर रहतली,बानाचे इंशद महाबली भारमै बांगावठी बालम बचलेसर पड़गासेन बिन इम मिली सो कुम पुपरी। कारी बाबा काही नाही दिन राम बापा सबबीवरी भाँदा हनि सीरीन (-10 मथ गाहा पान है मीरा कब पिसाई मा gro)
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy