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________________ १७८ वचनिका शैली में लिखा गया जैन ग्रन्थ पृथ्वीचन्द वा विलास अपने ही प्रकार का अनूठा गयंबन्ध है, जिसमें किसी काव्यात्मक रस से कम आनन्द नहीं। साथ ही जो गम काव्य की शैली का उदूभवकहा जा सकता है । परन्तु अधिकतर जैन लेखकों ने वर्णन की चारण बैली नहीं अपनाई है और इस ओर उदासीनता रहने से वे जैनेतर लेखकों से इस क्षेत्र में शिथिल दिखाई पड़ते हैं। अचलदास बीची दरी वचनिका इस दृष्टि से बाहरण शैली में लिखा एक सफल काव्य है जिसमें कवि का गद्यात्मक काव्य और काव्यात्मक गम समान रूप से परिलक्षित होता है। ५वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ऐसी कृतियों का मिलना आदिकालीन साहित्य की श्री सुषमा की वृद्धि में अत्यन्त महत्वपूर्ण चरण है। पूरी रचना काव्य गाहा, दूवडा, सोरठा- क्या बात भादि में लिली गई है। रचना अद्यावधि भकाशित है। रचना का प्रारम्भ कवि बुद्ध की स्वामिनी महिवारमर्दिनी महादेवी भैरवी तथा सरस्वती दोनों को नमन करके करता है। कवि ने सरस्वती से पहले दुगी की सिर नवाया है इससे काव्य की युद्ध प्रधान प्रवृत्ति और शैली का चारण पन स्पष्ट होता है। रचना की प्रारम्भिक वना देखिए: aate हथि विरोलि बीबह विरोलिये नाव पाहू वनइति ज्यों का ही मौकि टिम परविया भारम करि उपरिक देवि वारि बामति या इस ब मfeet माइ, गरज परिवार गरे इस बार वारी बी हवि ues का इकाति उहिया उपना कार बाकि है बाजा रधि बीस हथि रामायन ही राव कीमों ने इसी क सकति विमावि विमन होई (+4)
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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