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________________ १३७ संसार की नश्वरता मुक्ति का स्वरूप, आत्म दर्शन, आत्म ज्ञान, कर्म विपाक, विषय निवृत्ति और कैवल्य का सुन्दर वर्णन किया है। ऐसी रचनाओं में योगीन्द्र का परमात्म प्रकाश और पुनिराम सिंह कृत माकुड़ दोडा प्रमुख कृतियां है। माध्यात्मिक उपदेशों के साथ जैन कवियों ने आत्म बुद्धि और सदाचार को भी पूर्ण महत्व दिया है। नीति और सदाचार से ही मनुष्य जितना मात्मनिष्ठ साधक जनकर मनोविकारों को दूर कर सकता है उतना तय और तितिक्षा तथा बाह्याडंबर से नहीं। ऐसी रचनाव में देवसेन का सावयवयम्म दोहा, जिनदत्त सूरि का काल स्वरूप कुलक और उपवेश राम राम्र प्रमुख हैं। इन ग्रन्थों का मुख्य उद्देश्य धर्म विश्लेषण क्या प्रचार कला 1 उपदेश प्रधान रचनाओं में दूसरा स्थान स्त्रोत स्तवन सबन्धी रचनाओं का आया है के संचिग्रन्थ, अभय देवसूरकृत मिषन स्तोत्र तथा धर्मदूरि स्तुति देखी ही रचनाएं है। जिनदत्त हरि बर्बरी भी प्रशस्ति गान तथा स्तुति है। अपमं में रची कुछ उपदेश प्रधान रचनाएं बौद्धों और सिद्धों की भी मिलती है। जिनमें केवल बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों का प्रतिपादन है। बौद्धों ने इन मुक्तकर reerओं में कर्मकान्ड कढ़िवादी दृष्टिकोण क्या मायार्डवर की खूब निंदा की है। इन्हीं मौके में दोठाकोर, सीपद या कश्मीर दर्शन पर लिये कुछ यों के भी मिलते है। जिनमें कई टर पद में विषय वैविध्य, मार्यो की जीव्रता तथा अभियंता की बनता मिलती है। इस प्रकार जैन दोनों प्रधान काव्यों में उपदेश प्रधान, धर्म प्रधान, नीति तथा ब्यावार प्रधान, भावनाएं डी अधिक मिलती है। उपता को सदाचारी बनाने के लिए जनता की दीपा में किये गये ये मान कवियों में बाबा को ही अपनाया। क्योंकि ans ae are oा साधारण की मौत चाह की मादा थी। जैन कवियों में कितने भी काव्य लिये है उन सभी में धर्म प्राणधारा के रूप मेवा है। उदाहरणार्थ चरित काव्यों को ही के इसमें स्थात्मकता प्रेमास्थान लोक गाथाएँ हो रहती ही है, कवियों में उनकी परंपरा, प्रेम तथा ठोकानों की रंगीनियों द्वारा पर बना डाला है
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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