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________________ (२३) ७८ जैन कवियों ने लगभग सभी प्रकार की साहित्यिक सेवा की है। इन्होंने अपभ्रंश साहित्य को रखना और उसकी सुरक्षा में सबसे अधिक काम कि. T। वे ब्राहृमणों की तरह संस्कृत के अंध भक्त भी नहीं थे। क्योंकि वरिष्ट विश्वामित्र की भांति उनके मुनियों ने संस्कृत में ही नहीं प्राकृत में भी अपने अमूल्य ग्रन्थ लिखे थे। व्यापारी होने से बही माता तथा मातृभाषा मैं लिखने पढ़ने का ज्ञान होना उनके लिए बहुत जरूरी था। ब्राह्मणों की समाज व्यवस्था के साथ मे मधे हुए थे। ब्राहमणों के महाभारत पुराण तथा क्यावाती का हर तरफ से प्रभाव पड़ना जरूरी था । क कि मु बूंद की तरह थे। इस प्रकार जैन धार्मिक नेताओं के लिए यह जरूरी हो पड़ा कि अपने भक्तों को ब्राहमणों का ग्रास बनने से बचाने के लिए अपने स्वतंत्र क्यापुराण तैयार करें। व्यापारी से यह आशा नहीं रही जासकती कि वह धर्म जानने के लिए कठिन कठिन भाषाएं सीरे । अतः जैनियों ने देश भाषा में कथा साहित्य की दृष्टि की। जिसके कारण स्वयंपू और पुष्पदन्त जैसे अनमोल अद्वितीय कविरत्न हमें मिले। उस साहित्य की रक्षा के लिए हम और हमारी अगली पीढ़ियाँ उन चैन नर नारियों की हमेशा कुछ रहेगी, जिन्होंने इन अमूल्य निधियों को नष्ट होने से बचाया। याद रहिए इन क्यूक्य निधियों में सिर्फ जैनियों के ही नहीं बल्कि अनुदुर्रहमान के वासक जैसे ग्रन्थ मी है। की व्याख्या यही नहीं, पैन कवियों ने दार्शनिक सिद्धान्तों १- हिन्दी काव्य धारा पृ० ३८ श्री राहुल बास्कृत्यायन । २- जैन की विस्तृत व्याख्या अगले अन्याय के सिद्धान्त वाले पक्ष में की गई है। देवि प्रस्तुत ग्रन्थ का व्रतीय बध्याय । (#) acara-gara wer (ब) विशेष विस्तार के लिए एतदर्थ देखिए जैन दर्शन लेखक इनि श्री म्याविषयी प्रकाचक देवाचार्य जैन सभाः पाट व १९५६ ।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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