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________________ १०१९ को तथा उसके उत्तर काल को है। गाथा, दोहा, बस्तु, चौपाई आदि से निर्मित जिन विविध काव्य wir का परवर्तीकाल की काव्यपद्धतियों पर प्रभाव पड़ा है उनमेंदोडा पद्धति सबसे है। मध्यकालीन कवियों में कबीर, तुलसी, जायसी, केशय, बिहारी, मविराम, घनानंद, रहीम आदि कवियों ने इसका प्रयोग किया है। दोडा sters का प्रयोग तुलसी और जामसी ने गीत तथा पद षषति का विद्यापति • मिला। निराला और प्रसाद की तुलसी मीरा तथा सूर ने सपय पद्धति का प्रयोग बंद, भूषण आदि ने वीर काव्यों में तथा पादाकुलक, हरिमीत, भुजग प्रयात ताटंक, छप्पय, रोला, दोहा, सोरठा आदि छेदों का प्रयोग संत और मक्त कवियों में मिल जाता है। कविताओं के अन्त में कवि का नाम लिखने की प्रणाली भी इसी काव्य का प्रभाव। देवी छंदों में ए का प्रयोग का प्रयोग परिवर्ती रास तथा का काव्यों में मिलता है। मैय काव्यों में उत्तर अपभ्रंश के छंदों के ये लक्षण सर्वत्र परिक्षित हो जाते हैं। इस तरह अपभ्रंशके से छंद परवर्ती हिन्दी साहित्य रचना मैं प्रयुक्त छंद - चौपाई, सवैया, धमाक्षरी, कुन्डलियां बादि-प्रबन्ध काव्यों के लिए निश्चित कर लिए गए तथा दोहा मुक्तक और प्रबंध दोनों के लिए प्रयुक्त हुआ | दोहा से प्रमीत मुक्तक को after पर यह प्रभाव देखा जा सकता है बीमों का इनसे प्रभावित है उत्तर की लोकगीति क्या पद परंपरा मीरा के गीर्यो में उनामित है। दोहा कोड के गीतों की परम्परा, महाप्रान कवीर, गोरख, सूरदास, तुलसी, वडू मानक नादि के पदों में सुरक्षित है। के ग्रन्थ स्वयं की रामायण की रैली का इलसी के रामायय पर पूर्व प्रभाव है। सारे दूर साहित्य में अपभ्रंथ के यदों का है। कोष की छाया दीनदयाल की कुण्डलियों में ज्यों की त्यों देवी जा सकती है। हिन्दी के परवर्ती काव्यों- हमर रातो और है। इसी प्रकार की मौत पचति महादेवी, प्रसाद, वंद तथा निराका आधुनिक लगभग भी कवियों में मिलती है। वेदों की देवी लोक परंपराएं प्राकृत अपभ्रंश की गाथा छंद जान चरित में देखा जा सकता
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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