SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1057
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पिन राणीमुनि राधी हि यइ बालमि लं बिहू अन सामिणी सोमवयानि गुगरयषि रिद्धिय बाइदिधाई नि दुष्टवैवि पुनहि किधिय उड अधिक सह मी करि बम्हणी पसार गवि संपूरिय मोरडी बलि देकार (त्रिदी०प्र०पद .) बलारा गरी ते मगह ए कीसी बीन हो जावर सवि मिलीप ते उले गया सो प्रवचन नगरीय मन रतीय पुरंग पावलि अरि बरिया प के धरिया ने सि रहमा भालसि देय अपरिपच्या अब माईकाईम मि कीजा रापर ते सविनडया किरि किरि मा फार प्यार पुरका रीस-रेलिहि लिया मढमढ मंदिर वावि वाडी बेगि पाडी चल्लिया ( बिप्रबंध पु.) इन रागों के अतिरिक्त कवि ने देवी दालों का प्रयोग भी किया है। इन बालों में माणिक प्रथा पाठिी बाह (१८-) का प्रयोग मायामिक का एक उदाहरण वैदिक मायक्ट्रक डिमाबगर बरंग पर करियाईदिय तुरंग कवि कप महारथ वैमि बैग सामान पायक वन (4) या पाfesी डा . और बाद बबन वापि, बाबमा मामि पहपी समीर लिलाम गरीर (1)
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy