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________________ में देशी द लिखे गए है ताकि जन समाज संगीत तत्व के आधार पर रचनाओं में प्रस्तुत किए साहित्य दर्शन और आध्यात्मज्ञान में प्रवृत्त हो सके। इन जैन कवियों ने यो को अनेक रामों में पुष्ट क्यिा है अक्षा देशी संवों के विकास में महत्वपूर्ण योग देने वाली कृतियां नम: त्रिभुबमदीपक प्रबन्ध, रंगसागर नेमिफागु, सरवर गच्छ पट्टावली तथा विद्याविलास पवाडी है। मात्रामेल और अपर मेलों के प्रकार, उनकी परंपरा, बहिवा, गणव्यवस्था, लघु गुरु विवेक आवृत्त संधि, प्रारमेल वृत्त, मात्रामेल जाति छदों : तथा देशी ईदों पर विस्तृत प्रकार श्री रामनारायण विश्वनाथ पाठक ने अपने एंद विषयक वृहत अन्च किया है। सप्रन्ध लेखक ने गेंदों का वैज्ञानिक विश्लेषण किया है। मानावृत्त और माल बों की परंपरा और उनके विदयमान संगीत का एंवों में उपयोग, को के विष उनकी मात्रा तथा गणों की व्यवस्था का वैज्ञानिक विश्लेषण किया है। उदाहरणार्थ वा और स्वर का ब न लेखक पदों में देखिए “मा रीते बाल तत्व संगीत मा प्रवेश पामी संगीत ना स्वरों ने कालमा मा बिकरे कोई पराग मा मवाना गीतमा संगीना स्वरो होय टाईज नही, मानो हरेक स्वर अमुक मामाधी प्रयोगायलो दोष हे मानो हरेक स्थर सभाबा वी प्रयोगको अने रामनी प्राकृति भारी स्वर बने र स्वरनी का नाम पदी निवड लेखक माविकालीन मार लल्लों की गय योजना भी अपने ही ढेम गे। पित .- Nag. r माव रामनारायण पाका M ETी बिना रामनाराम पाठक,.mu
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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