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________________ ११८ इम मतिय ललिय सुंदरी गायई महर बार मीम हरिपरि (२४) (ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह) तरल तुरंगनि चडिया लाट्नु मागम वंतिय दान दिवड च कोल्हूय गणवरित समरिमर जिम सरस करि कालिन कुमर । (२६) (पे०जे० का० सं०) इस प्रकार इस छेद में चार चरण होते हैं तथा यह गेयता इसका प्रधान लवण है। इस छंद के सम्बन्ध में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं होती। (१५) का रास की मति फागु काव्य इतना प्रचलित हुआ कि का नाम से स्वतंत्र काव्य फागु छेद में प्रणीत किए जाने हो का छेद जंबू स्वामी फागु में, रंग सागर नैमि का (बैंड १ कड़ी ७-१४, २७-२१ २७-३०, खंड २ कड़ी ६-९, १५-१९,१५०२६, २८-३० व ३६-३७) में रोड बड़ी ६-० १३, १६-१७ २४०३९ वा २४ कड़ियों में प्रयुक्त हुआ है। रश्दी से लेकर व मादी तक का वैकमनेक कृतियां प्राप्त हुई है। वस्तुतः काय एक प्रकार का छंद विशेष ही हो गया है। कवि ने इसमें दोडा साथ मात्रा बंध करके मित्र प्रयोग के इको फाइछेद बनाया है। इस प्रकार की साक्यतरसूरि भी मिलती है। उदाहरण देखिए fare पानी का रंग कारण बाली पत बारका वाला ढोरमय नवरंग चंदा फाली मा डेढई मारि अपर उप टाईगर तिरे मोलि कनक क्याट कम गार्षिक मय होस् उपरि उपरि अविचल चाट (वायर नेमिका)
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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