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________________ ११५ इस प्रकार यह त्रियंगी ताल का महत्व स्पष्ट करता है। गेयता इस छंद का प्रधान गुण है। देशी ढालों में ढल जाने से ही यह छेद जन प्रचलित हो गया। समरा रास: (११)_त्रिपदी इस रास में दोहा, चरमाकुल त्या फूलमा बंद मिलते है। एक विशेष तथा मौलिक देवी द"त्रिपदी" मिलता है। यह सिर्फ इसी रास में प्रयुक्त हुबा है रासकार ने सम्भवतः तीन पदों को मिलाकर इस मौलिक देशी छंद की दृष्टि की है। अतः इसद का विल्प बात है। त्रिवेदी समारास की ११वीं भाषा में ही प्रयुक्त हुआ है। त्रिपदी का यह छंद पूर्व वर्णित काव्यों में नहीं मिलता । समरारा में कवि ने ६ कड़ियों में इसका प्रयोग किया है: कि इन पुरि जो प नगली सफलकरउ रिकरि आरपार निवमा नेत्रि करेषु बेडी बेडीय जोडि बलि ए की बंधिवारी ॥३॥ देवाला माहि बळ ए संपति सहित कहर लाइ जग प्रवह ए बाइ विमान जिम ante are as नवरंग प राव काडार ॥४॥ (बमराराट्र भाषा १वीं) छंदों को देखने पर इसको तीन तीन पद इबारा वह कहा जा सकता है कि कवि ने इसका त्रिपदी नामकरण संभवतः इसीलिए किया होगा। यह भी सम्भव है कि वे वथा प्रचार के लिए कवि ने इसे अन्य प्रचलित यों से लोकप्रिय बन अथवा काव्य में बंद वैविष्य प्रस्तुत करने की इष्टि से इसका प्रयोग किया हो । पंच वाडव बरित रा इसका का परिचय इस प्रकार : त्यों का प्रयोग किया गया है। व्यणि क्रम से छदों में १६+६+१३ )का चरणाकुल, फिर १- मरा राइ माया व देवि प्रा०० का० संग्रह।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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