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________________ १११ बडउ संथातिपति लोक बदामच बेलडीया संघ पडत तहि चलयर अखंड पीभागप आगे की दो देशी डालों में २७ मात्राओं के सवैया का देशी रूप है। जयदेव के गीत गोविन्द में प्रयुक्त लोक प्रचलित इन देवी छंदों की परंपरा का निर्वाह सर्वप्रथम पेथड राख के रचनाकार मंडलिक ने इस कृति में किया है। ये देशी द गीत गोविन्द की ही पाठिमीठे है। दूसरा बंध तालवृत्त देजिए । सवैया की यह देवी अपूर्व संगीत से ओतप्रोत है: (ज) सवैया की देशी डाल राजलकंस, हि नाचिएप सहिडी प ललागीय गिरनारे refer कलियामका सामलडर संसारे । । वहि नाचिन प अंग परवलि सुमदम, प जल पहरीय धोती प्रवी १ इन्द्र महोत्सव बीयरंगी तर्हि वयठति बहु पर्वत as ना आये इसी सवैया की देवी की भांति दोहरों की देवी भी इष्टुव्य है। इससे प्रचलित देवी द अत्यन्त सरस है। कवि हरियाला सूडारे मनीता सूहा रे- आदि मधुर शब्दों द्वारा रक्षा का महत्व और अधिक बढ़ जाता है देखिए (ब) दोहों की देवी डा अविवि मा मोरह पूरी जबलोईन जगन्नाथ ire पूजन जुहारीय वलीका पे कम कीयाथ लीमा गई मिनारि state बंद बंदीय देवी ही बाम far tari for मन रवि मंडलिक ममइ ईस विडि ना # कि पीवान मेरि हरि हरीबाला दूहारे दूर है संत मनीला हारे। १- प्रा०यू० का ० १८-१९ - नही ग्रन्थ (००००१८-१९ ।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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