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________________ १७७ इन देशी हदों में अधिकांश द, वाल, बत और संगीत पर आधारित है। अतः प्रमुख इतियों में इन देवी के की क्या स्थिति रही है इनकी विकास परम्परा क्या है आदि का अध्ययन अपेक्षित है।आदिकालीन इन रचनाओं में जिवती मौलिकता इन मिश्रबन्धों की मिलती है उतनी अन्यरंदों की नहीं मिलती । देशी छेदों की परम्परा का अनुशीलन भी इस प्रसंग में आवश्यक प्रतीत होता है। राजस्थान में लोक साहित्य ने इन देवी छंदों को जीवित रखा है। जितनी मी मीतात्मक डालें, जो ये कवि गाते थे, छन्द प्रधान है ।ये ढाले अभूतपू सरता से भोतप्रोत कम वालवत्त एवं मात्रारत से अनुस्यूंत है। जैन कवि जन कवि थे। नगर नगर में ग्राम ग्राम में उनका विहार होने के कारण उन्होंने जितना और जो कुछ लिया वह सब जन भाषा में लिखा है। जन मावा में लोक संगीत का प्रवाह होता है। संगीत से जन साधारण को प्रभावित मी शीघ्र किया जा सकता है अतः उन्होंने कई रागों को इन दों का माध्यम बना है। कई छंद से उन्होंने नई रागों को इब-से निर्मित की ओर कई रागों से उन्होंने नये द बनाये। संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश में शास्त्री शिल्प के आधार पर द रचना होती थी इन अविर काल के कवियों को शास्त्रीयता का यह संद बंधन नहीं था। उन्होंने इसलिए संयुक्त व्रत्य (strophia netems) अथवा free a foa, जैसा वादा सासंद में तोड़ मरोड़ किया। उनका अपना यह परिवर्तन लगभग अनेक छंदों में स्पष्ट परिलवित होता है। कंदों में किए गए इस परिवर्तन के शास्त्रीय विल्प की या कही तक हुई, वह तो निश्चित कम से नहीं कहा जा सकता परन्तु सत्य तो यह था कि इसके स्त्रीय ve ft afe fee ही नहीं थी। वो कुछ भी लिखना चाहते थे जन भावा बरत और पिवी की मिठास लिए हुए इसके अतिरिक्त मिला दम साधारण की समय व कवि की वस्तु भी बन गए थे, क्योंकि उनमें atra का मरा रखा था. इन कवियों ने जन भाषा में घुलकर काव्य रचना की। इसका प्रभाग जागे चलकर यह हुआ कि कविगण पूरी पूरी रमाएं ही
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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