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________________ मात्रावृत्तों के अतिरिक्त अपभ्रंश कवियों ने भी कहीं कहीं वर्म वृत्त और अक्षर गम प्रयुक्त किए है। पुष्पदन्त का जहर चरित इसका उदाहरण है। परन्तु उसके इन वृत्तों का समाकार भी बाल में हो जाता है। ये वृत्त ६ मात्राओं के बाल में गाए जा सकते है तथा उनमें प्रत्येक पक्ति में २ ताल गण है। परन्तु इन छंदों से इतर भी प्राकृत और अपभ्रंश में ऐसे छंद भी है जो न तालवृत्त डी कहे जाते है और न वर्णवत् ही ऐसे हन्दों में संस्कृत की भांति लघुगुरु और विभिन्न Tea Tश होता है।' १७३ अपग्रेड में इन छन्दों के विल्प का विश्लेषण करने वाले ग्रन्थ हेमचन्द का दोनुशासन, प्राकृत पैलम विरंडा का वृत्वजाति समुच्चय, स्वयंभू का स्वयंपूर्णदस नदीया का गाथालवण तथा रत्नवेसर का कवि वर्पण और छंद कोन। इन्हीं ग्रन्थों में उत्तर अपश में प्रयुक्त छंदों की परम्परा पूर्णतया सुरक्षित मिल जाती है। अतः पद के उम्बों की इसी वास्त्रीय परम्परा (सिक्क हेडीशन) का निर्वाह पुरानी हिन्दी में मिलता है। मात्रिक और वार्षिक दोनों प्रकार के छन्दों में अनेक छन्द तो इन कृतियों में अपभ्रंथ की तरह ही मिलते है परन्तु फिर भी अनेक छन्द ऐसे है जो अप से भिन्न है। जाः स्वतंत्र रूप से उनका परिशीलन आवश्यक है। अपके इन दों का अध्ययन अनेक विद्वानों में बिल्वार में प्रस्तुत किया है। परन्तु अभी उत्तर जयनंद के ोिं पर कम प्रकाश डाला गया है जो नहीं के बराबर है। वस्तुतः संस्कृत और वैदिक उम्दों की संगीत परम्परा १- भारत कौमुदी, १० केनरा दी यूनिर्सिटी बम्बई में हद सम्बन्धी प्रकाशित 1611 भूमिका नाम ० ४८ से ७५ डा० हरियस नीला (क) बाबाची क्रयादि। (ब) पछि ०७२ भूमिका माम डा० मायाणी द्वारा सम्पादित (a) बदामी और उनका काव्यः डा० विपिन बिहारी त्रिवेदी ० २१५ () हाय का वादिकाल: डा० हजारी प्रसाद दिववेदी पंचम व्यास्था १०-११३।
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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