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________________ ८४ आधुनिकता और राष्ट्रीयता १ विजय के विरुद्ध सामूहिक प्रतिरोधात्मक भावना जाग उठी थी । अंगरेजी राष्ट्रवाद स्पेनी बेड़े के प्रतिरोध के फलस्वरूप पैदा हुआ और कुछ ही वर्षों बाद इसकी ऐतिहासिक अभिव्यक्ति शेक्सपियर में हुई । जर्मन और रूसी राष्ट्रवाद का जन्म नेपोलियन के प्रति विरोध से हुआ । अमरीकी राष्ट्रवाद ब्रिटिश फौजियों के प्रतिरोध स्वरूप जन्मा । दुर्भाग्यवश, एक यह ऐसी मनोवैज्ञानिक प्राकृतिक गत्यात्मकता है जिसने प्रत्येक दशा में राष्ट्रवाद के विकास को अनुशासित किया है। इस दृष्टि से भारतीय राष्ट्रवाद का जन्म भी नये दृष्टिकोण से १८५७ से ही माना जा सकता है। यह विदेशी साम्राज्यवाद के प्रति विरोध प्रतिक्रिया के रूप में ही हुआ । भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास भारतीय राष्ट्रवाद की अभिव्यक्ति है । २६ जनवरी, १९३० को पूर्ण स्वाधीनता का प्रतिज्ञापत्र घोषित किया गया । उसकी पंक्तियाँ भारतीय राष्ट्रीय भावना और राष्ट्रीय आदर्श को व्यक्त करनेवाली हैं । उस प्रतिज्ञा पत्र की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं- " हम भारतीय प्रजाजन भी अन्य राष्ट्रों की भांति अपना यह जन्म सिद्ध अधिकार मानते हैं कि हम स्वतंत्र होकर रहें, अपनी मेहनत का फल खुद भोगें और हमें जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक सुविधाएँ मिलें जिससे हमें भी विकास का पूरा पूरा मौका मिले। हम यह भी मानते हैं कि अगर कोई सरकार ये अधिकार छीन लेती है और प्रजा को सताती है तो प्रजा को उस सरकार को बदल देंने या मिटा देने का भी हक है । हिन्दुस्तान की अंगरेजी सरकार ने हिन्दुस्तानियों की स्वतंत्रता का ही अपहरण नहीं किया है, बल्कि उसका आधार ही गरीबों के रक्तशोषण पर है और उसने आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टिसे हिन्दुस्तान का नाश कर दिया है । इसलिए हमारा विश्वास है कि हिन्दुस्तान को अंगरेजों से सम्बन्ध विच्छेद करके पूर्ण स्वराज्य या मुकम्मल आजादी प्राप्त कर लेनी चाहिए ।' " २ प्रतिज्ञा पत्र में आगे और भी लिखा गया है किन्तु ये पंक्तियाँ भी स्वतंत्रता की घोषणा को व्यक्त कर रही हैं । यह ठीक है कि इस समय पाकिस्तान के बनने का पूर्ण विश्वास नहीं था और न ही इस प्रकार की धारणा का जन्म ही इस समय हुआ था । यह बाद की बात है । मध्यकाल में भारतीय राष्ट्रीयता का रूप धार्मिक रहा । यद्यपि राष्ट्रवाद के आधार पर इस प्रकार की धारणा का अब कोई महत्त्व नहीं रह गया था किन्तु धार्मिक कट्टरता ने भारत के दो टुकडे कर दिये । राष्ट्रीयता का धार्मिक आधार इस युग में भी आकर क्षीण नहीं हो सका। गांधीजी के सभी प्रयत्न इस दिशा में विफल हुए । १५ अगस्त, १९४७ - १. विवेक या विनाश-बट्रेंड रसेल अनु : वीरेन्द्र त्रिपाठी - पृ. ६३ । २. मेरी कहानी -- जवाहरलाल नेहरू ( दसवां संस्करण) - पृ. ८५८
SR No.010027
Book TitleAadhunikta aur Rashtriyata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Bora
PublisherNamita Prakashan Aurangabad
Publication Year1973
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Social
File Size10 MB
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