SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आधुनिकता और राष्ट्रीयता भारत की भौगोलिक एकता का उल्लेख पुराणों में है। भारतवर्ष हिमालय और दक्षिणी समुद्रों के मध्य के सारे भू-भाग को बताया गया है। इस देश भर में जगह-जगह तीर्थस्थान है। यह यहाँ की जनता के धार्मिक उत्साह का परिणाम है। मुकर्जी ने लिखा है- " तीर्थयात्रा की संस्था अंततोगत्वा मातृभूमि के प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति है, यह देश की पूजा की लाक्षणिक हिन्दू रीतियों में से एक है"" तीर्थस्थानों का जाल भारत भर में उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम चारों ओर फैला हुआ है। ये इस बात का द्योतक है कि भारत की जनता अपनी मातृभूमि के प्रति पूज्य भाव रखती थी। धार्मिक पुण्य, आध्यात्मिक लाभ के साथ-साथ स्थान-प्रेम भौगोलिक महत्त्व की दृष्टि और कलात्मक अभिव्यक्ति के तत्त्व भी इसके कारणीभूत हैं। राष्ट्रीय भावना के प्रसार में, राष्ट्रीय भावना की अभिव्यक्ति में, धर्म और संस्कृति के परिरक्षण में भाषा का महत्त्वपूर्ण स्थान है । संस्कृत भाषा भारतीय भाषाओं की जननी है और यही संसार की सर्वप्रथम समृद्ध भाषा है। इस भाषा के साहित्य में भारतीय राष्ट्रीय भावना की अभिव्यक्ति हुई है। भारतीय दृष्टि में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जीवन के लक्ष्य माने गये। इनमें से प्रत्येक विभाग का अपना-अपना साहित्य विकसित हुआ है। संस्कृत भाषा केवल साहित्यिक दृष्टि से ही नहीं, विचार विनिमय वाणिज्य-व्यवसाय की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण रही। इसे साहित्यिक, धार्मिक महत्त्व तो प्राप्त था ही, लौकिक महत्त्व भी प्राप्त था। इसमें जो कुछ लिखा गया, वह देश भर में प्रामाणिक गया। संस्कृत की प्रामाणिकता पर आज भी भारतीय जनता की आस्था है। इस भाषा की महत्ता का ज्ञान इससे भी किया जा सकता है कि भारत की आधुनिक भाषाओं में तमिल को छोड़ कर अन्य सभी भाषाओं में संस्कृत की गहरी जडें जमी हुई हैं। एक दृष्टि से यदि इन भाषाओं मे से संस्कृत को हटा दिया जाय तो इनका अस्तित्व क्या रहेगा? संस्कृत के बाद प्राकृत भाषाओं और तत्पश्चात् अपभ्रंश एवं देशी भाषाओं में भी संस्कृत से शक्ति प्राप्त कर देश की परम्परा को बनाये रखने में एवं राष्ट्रीय भावना के वहन में अपना योग दिया है। प्राचीन भारत की राष्ट्रीय भावना की विशेषताओं को अब संक्षेप में * इस प्रकार से कहा जा सकता है : १. भौगोलिक एकता की अनुभूति राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक में थी। १. हिन्दू संस्कृति में राष्ट्रवाद--राधाकुमुद मुकर्जी पृ. ३१
SR No.010027
Book TitleAadhunikta aur Rashtriyata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Bora
PublisherNamita Prakashan Aurangabad
Publication Year1973
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Social
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy