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________________ ६८ आधुनिकता और राष्ट्रीयता समय में जितना होता है, उतना युगान्तर में नहीं। एक प्रकार से उसका मल्य ऐतिहासिक हो जाता है । डॉ. देवराज लिखते हैं “ वह साहित्य जो ऐतिहासिक महत्त्व को प्राप्त करता है, स्वभावत: युग जीवन के तत्त्वों से ग्रथित होता है-वह अपने समय के सामाजिक यथार्थ को प्रकट या प्रतिफलित करता है। साथ ही वह अपने जीवन का दिशा-निर्देश भी करता है, वह युग जीवन को बदलने का अस्त्र भी बन जाता है।"१ डॉ. देवराज ने 'बदलने' की इस प्रेरणा का सम्बन्ध कलाकार और जनता में बदले हुए यथार्थ से जोड़ा है। राष्ट्रीय साहित्य में ये विशेषता होती है। साहित्य युग की आवश्यकता की पूर्ति करता है । युग का प्रभाव दो रूपों में होता है प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष। साहित्य में जहाँ व्यक्ति की भावात्मक समस्याओं और अनुभूतियों की अभिव्यत्त्कि होती है, वहाँ सामाजिक समास्याओं की अभिव्यक्ति भी होती है । प्रथम यदि मनोवैज्ञानिक या मनोविश्लेषणात्मक साहित्य है, तो द्वितीय सामाजिक साहित्य है। राष्ट्रीय साहित्य सामाजिक साहित्य का ही एक अंग है। वैयक्तिक समस्याओं और अनुभूतियों को लेकर लिखे जाने वाले साहित्य की अपेक्षा सामाजिक समास्याओं को लेकर लिखे जाने वाले साहित्य पर युग की छाप अधिक प्रत्यक्ष रूप में पड़ती है। राष्ट्रीय साहित्य में इस दृष्टि से युग का यथार्थ होता है। प्रत्येक युग में सारा साहित्य सामायिक ही होता है । प्राय : अपने युग की समस्या को लेकर प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करनेवाले साहित्य को सामाजिक साहित्य कहते हैं । किन्तु व्यक्ति के सार्वजनीन भावों को व्यापक रूप से व्यक्त करने वाला साहित्य भी-चाहे वह किसी रूप में हो-युग धर्म से भिन्न नहीं होता । इतना ही है कि ऐसे सहित्य पर युगधर्म की छाप अप्रत्यक्ष रूप में पडती है। सामाजिक और शाश्वत शब्द सापेक्ष हैं। सामयिक साहित्य का मूल्य क्षणिक ही होगा, ऐसी बात नहीं। यदि सामयिक समस्या को लेकर लिखी गई रचना मनुष्य के हार्दिक भावों को छू सकती है या उद्बोधन करने में वह समर्थ है तो उनका मूल्य युगान्तर में भी अवश्य होता है। जिमरन के अनुसार- " राष्ट्रीयता का प्रश्न सामूहिक जीवन, सामूहिक विकास और सामूहिक आत्मसम्मान से सम्बद्ध है" २ इस दृष्टिसे साहित्य १. आधुनिक समीक्षा- डॉ. देवराज- पृ. १८ २. हिन्दी साहित्य कोश (प्रथम संस्करण ) प. सं. ६५३
SR No.010027
Book TitleAadhunikta aur Rashtriyata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Bora
PublisherNamita Prakashan Aurangabad
Publication Year1973
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Social
File Size10 MB
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