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________________ ६० आधुनिकता और राष्ट्रीयता शिक्षा के द्वारा वैज्ञानिक मान्यताओं का बोध बढ़ा है और इससे राष्ट्रीय मूल्यों के प्रचार-प्रसार में सहायता मिल रही है । किन्तु इस शिक्षा के बावजूद मानवीय मूल्यों के लिए आज भी बहुत बड़ा आधार धर्म ही है । शिक्षितों ( आज की शिक्षा के अनुसार ) अधिकार बोध की भावना बढ़ी है। इस भावना ने राजनैतिक शक्तियों को चुनौती दी है और राजनैतिक शक्तियाँ इस अधिकार का समाधान तात्त्विक धरातल पर नहीं दे सकती। इससे असंतोष की भावना जनजीवन में बढ़ती जा रही है। ऐसी स्थिति में धर्म ही उन्हें फिर शान्ति प्रदान करने में सहायक हो सकता है । शिक्षा के कारण, वैज्ञानिक मान्यताओं के बोध के कारण धर्म पर से अब आस्था उठती प्रतीत हो रही है । एक प्रकार से धर्म के आधार पर आस्था की खोज में मानव संलग्न है, ऐसा कहा जा सकता है। एक ओर विज्ञान की शिक्षा जहाँ मनुष्य को प्रवृत्ति की ओर ( अधिकार बोध की ओर ) ले जा रही है, वहाँ धर्म की शिक्षा मनुष्य को ( कर्तव्य बोध की ओर ) त्याग की ओर या निवृत्ति की ओर ले जाती है। इन दोनों के सन्तुलन में जीवन है। व्यावहारिक दृष्टि से धर्म का नैतिक मूल्यों पर अधिक प्रभाव होने के कारण समाज में अलिखित विधान कार्यरत रहता है । लिखित विधान ( संविधान ) राष्ट्रीय मूल्यों का द्योतक है, जब कि अलिखित विधान धार्मिक विधान का द्योतक है । ऊपर धर्म और राष्ट्रीयता दोनों का यह विश्लेषण सामान्य घरातल पर प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है। इस विश्लेषण में मानवीय मूल्य की स्थिति को स्पष्ट किया गया है । राष्ट्रीय मूल्य किसी व्यक्ति को किसी राष्ट्र में उसी समय प्राप्त हो सकते हैं, जब कि वह उस राष्ट्र का नागरिक है । राष्ट्रीय मूल्यों की राजनैतिक सीमाएं है । इन सीमाओं के कारण मानवीय मूल्यों की हानि होती है । राजनैतिक सीमाओं को त्यागने के बाद मनुष्य के साथ जो मूल्य रह जाते हैं, वे धार्मिक मूल्य होते है और इस धर्म में सामान्य रूप से पाओ जानेवाले मानवीय मूल्य ही प्रबल होते हैं । इन मानवीय मूल्यों की रक्षा अन्तर्राष्ट्रीय विधान के अनुसार भले ही होती हों किन्तु सच्चाई यह है ft व्यावहारिक धरातल पर धार्मिक मूल्य ही अधिक सहायक होते हैं। राष्ट्रीय मूल्य का सम्बन्ध राजनैतिक अधिकारों से है । इस अधिकार का बोध इतिहास बोध (राष्ट्र विशेष का अपना इतिहास - बोध) के आधार पर होता है। यह बोध आज आवश्यक ही नहीं अनिवार्य सा हो गया है। अब आवश्यकता इस बात की है कि इस बोध में आस्था के निर्माण के लिए प्रयत्न हो । राष्ट्रीयता धर्म से बद्ध होते हुए अपने साथ किसी विशेषण को नहीं जोड़ सकती । धर्म के सामान्य तत्त्वों को जिनका सम्बन्ध मानवीय मूल्यों से है,
SR No.010027
Book TitleAadhunikta aur Rashtriyata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Bora
PublisherNamita Prakashan Aurangabad
Publication Year1973
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Social
File Size10 MB
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