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________________ धर्म और मूल्य ५७ होता है, तो उसका प्रभाव सारे विश्व की राजनीति पर पड़ता है। इस अर्थ में विश्व का इतिहास-बोध उन्नत हो गया है, कहा जा रहा है। यहाँ तक कि प्रत्येक राष्ट्र अपनी राष्ट्रीय नीति का निर्धारण करते समय अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का ध्यान रखना सीख रहे हैं । इस अर्थ में (अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का ध्यान रखने के संदर्भ में) कोई भी राष्ट्र धार्मिक नीति का अनुसरण नहीं कर सकता। यदि कोई राष्ट्र धर्मोन्माद के आधार पर जीने का प्रयत्न करेगा तो अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ उस राष्ट्र को अपनी नीति बदलने पर मजबूर कर देगी । इतिहास और राजनीति के विद्यार्थी इस बात को अच्छी तरह जानते हैं। अब धर्म का प्रभाव राष्ट्र के भीतर है। यह प्रभाव राष्ट्र को संस्कृति के रूप में स्वीकृत हो रहा है और अभिव्यक्ति पा रहा है। - एक राष्ट्र में आज अनेकों धर्म के लोग रहते हैं। सब धर्मों की समाज व्यवस्था भिन्न-भिन्न है । उनकी यह भिन्नता विशेष रूप से आचार, व्यवहार, भाषा तथा जीव-जगत-ईश्वर सम्बन्धी मान्यताओं को लेकर है । इस भिन्नता में सामान्य तत्त्व भी हैं, जो सारी मानव जाति के लिए समान हैं । इन सामान्य तत्त्वों के आधार पर ही सब धर्मों के लोग मिलजुल कर रहते हैं। विवाद उस समय पैदा होता है, जब एक धर्म के लोग दूसरे धर्म को हेय दृष्टि से देखते हैं। देखते ही नहीं, दूसरों को सहन करने के लिए तैयार नहीं होते । यह स्थिति धर्मोन्माद की ह । धर्मोन्माद आवेगों से परिचालित होता है और संख्या के आधार पर इसे बल मिलता है। धर्म की शक्ति संघशक्ति होती है और इसका नियंत्रण विश्वास के आधार पर होता है । यदि इसको राजनैतिक समर्थन प्राप्त है, तो यह संघशक्ति और बढ़ जाती है। उस स्थिति में धर्म को राष्ट्रीय रूप में अभिहित करने का प्रयत्न किया जाता है । इस तुलना में वे धर्म जिन्हें राजनैतिक रूप में समर्थन प्राप्त नहीं होता, वे उपेक्षणीय रहते हैं । वे अपने धर्म का पालन वैयक्तिक अधिकार के नाते करते हैं और अपनी-अपनी संघशक्ति के आधार पर अपने अस्तित्व को बनाए रखते हैं । किसी भी धर्म पर चोट होती है तो संघ उसके पीछे खड़ा हो जाता है और अपने अस्तित्व के लिए लड़ता है। यहाँ तक कि पारिवारिक एवं समाज व्यवस्था का विधान धर्म के आधार पर बना हुआ ही व्यवहृत होता देखा गया है। उसकी व्यावहारिक उपयोगिता को देखकर सरकार स्वयं न्यायालय में न्याय की व्यवस्था धर्मशास्त्रों के आधार पर करती है । बहुत से पारिवारिक, वैवाहिक, सामाजिक, उत्तराधिकार सम्बन्धी एवं अन्य अनेक निर्णय धर्म के आधार पर निश्चित होते हैं। धर्म का यह शासन राजनैतिक शासन से भी अधिक कठोर है और इससे व्यक्ति अपने
SR No.010027
Book TitleAadhunikta aur Rashtriyata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Bora
PublisherNamita Prakashan Aurangabad
Publication Year1973
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Social
File Size10 MB
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