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________________ धर्म और मूल्य ३ धर्म के ये सब तत्त्व सामान्य हैं। सभी धर्मों में ये लक्षण मिल सकते हैं। 'धर्म के आधार पर यदि इतिहास का अध्ययन करें और धर्म का प्रभाव समाज पर जिस रूप में रहा है, इसका विश्लेषण तथ्यों के आधार पर करें तो ज्ञात होगा कि धर्म ने सत्ताओं पर ( राजनैतिक सत्ताओं पर ) अधिकार किया है। 'धर्मगुरुओं का शासन राजाओं ने स्वीकार किया है और यहा माना गया है कि राजाओं का कर्तव्य धर्म की रक्षा करना है। क्षात्र-वृत्ति धर्म रक्षणार्थ अपनानी चाहिए ऐसी मान्यता रही है। इतिहास के आधार पर इस दृष्टि से अनेक उदाहरण प्रस्तुत किए जा सकते हैं, जहाँ धर्म ने राजनीति में प्रवेश किया और युद्ध हुए हैं। उदाहरणों के विस्तार में न जाते हुए, यहाँ इतना समझ लेना पर्याप्त होगा कि धर्म का राजनीति पर प्रभाव अक्षुण्ण है और इस प्रभाव के कारण राष्ट्रीयता प्रभावित होती है। आज यह प्रश्न विचारणीय है कि राष्ट्रीय मूल्य और धार्मिक मूल्य में मानवीय मूल्यों का स्थान क्या है ? राष्ट्रीय मूल्य बंधे हुए मूल्य हैं और इसी तरह धार्मिक मूल्य भी बंधे हुए मूल्य हैं । इन मूल्यों की सीमाएं है। इन मूल्यों में ही सामान्य मानवीय मूल्यों की खोज में हम सब संलग्न हैं । मध्यकाल में धर्म के आधार पर युद्ध हुए हैं। वह धार्मिक उन्माद अब नहीं रहा है। कम से कम विश्व में अब ऐसी स्थिति का निर्माण हो गया है कि ईसाई हो, हिन्दू हो, मुसलमान हो, बौद्ध हो और कोई धर्म हो, सभी एक दूसरे के अस्तित्व को सहन करना सीख गए हैं। अब युद्ध का प्रमुख कारण धर्म नहीं रहा है। भारत का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ । पाकिस्तान के निर्माण में 'धर्म' प्रमुख तत्त्व रहा है । इस आधार पर भारत की राष्ट्रीयता और पाकिस्तान की राष्ट्रीयता में अंतर है। जिस आधार पर (धर्म के आधार पर) पाकिस्तान का निर्माण हुआ, वह आधार कितना गलत रहा है, इस का उदाहरण पाकिस्तान का इन पच्चीस बरसों का इतिहास है। धर्म के आधार पर जनजीवन का हस्तांतरण संभव नहीं । ये विचार कि सारे मुसलमान पाकिस्तान में चले जाएं और सारे हिंदू भारत में रहें और जो जहाँ है, वहाँ रहकर अपने धर्म को बदल दें। यह सब व्यावहारिक नहीं है । भारत तो धर्म निरपेक्ष राष्ट्र की नीति का पालन कर रहा है । किंतु स्वयं पाकिस्तान जिसकी रीढ़ धर्म है, वह भी आज अपनी इस रीढ़ को कमजोर मानने पर विवश हो गया है । बंगला देश का निर्माण धर्म के आधार पर नहीं हुआ और न ही इस युद्ध के पीछे ऐसी कोई भूमिका ही रही है । अतः अब यह मान लिया जा सकता है कि भविष्य में धर्म का
SR No.010027
Book TitleAadhunikta aur Rashtriyata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Bora
PublisherNamita Prakashan Aurangabad
Publication Year1973
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Social
File Size10 MB
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