SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सत्य २५ उस युग के अनुकूल रही। अपने युग में ये धर्म प्रवर्तक निश्चित ही क्रांतिकारी रहे हैं । गौतम बुद्ध के काल में गौतम बुद्ध का विरोध हुआ है, इसी तरह अन्य धर्म प्रवर्तकों के जीवन का यदि अध्ययन करें तो सभी में यह दिखलाई देगा कि उनके जीवन काल में उनका भी बड़ा विरोध हुआ है । क्राइस्ट को तो फाँसी ही दी गई है। मानव जीवन के ये सत्यान्वेषी अपने जीवन काल में देवता नहीं, मनुष्य थे, किन्तु बाद में वे देवता के रूप में पूजे गए । उन सत्यान्वेषियों ने अपने युग की सभ्यता का जीवन अपनाने में संकोच नहीं किया था । उन्होंने उस युग की वैज्ञानिक उपलब्धियों को नकारा नहीं था । वैज्ञानिक सत्य को नकारने वाला अपने युग से पीछे होता है । उन्होंने उस युग 'के वैज्ञानिक सत्य को स्वीकार किया था और उसी के अनुकूल जीवन की व्यवस्था में परिवर्तन करना चाहा । ( यहाँ एक प्रश्न सहज ही में उपस्थित हो सकता है और वह यह कि गौतम बुद्ध का दर्शन निवृत्ति में, निर्वाण में विश्वास करने वाला है और यह दर्शन प्रवृत्ति मूलक न होने के कारण वैज्ञानिक उपलब्धियों का लाभ उठाने वाला नहीं हो सकता, अतः ऊपर कही गयी बात गलत सिद्ध हो जाती है । इसे यों भी व्यक्त किया जा सकता है कि गौतम बुद्ध को सभी प्रकार के सुख प्राप्त थे और उन्हें महल छोड़ कर जाना उचित नहीं था, आदि आदि ) इस दृष्टि से हिन्दुओं का धर्मशास्त्र ( जिस जिस समय बना है ) अपने युग की सभ्यता का पूरा पूरा चित्र प्रस्तुत करता है । सभ्यता के इस चित्र में अपने युग की वैज्ञानिक उपलब्धियों को पूर्णतः स्वीकारा गया है । सभ्यता की बदलती परिस्थितियों में शास्त्र की व्यवस्था भी बदली है । काणे के धर्मशास्त्र में इस प्रकार के अनेक उदाहरण मिल जाएँगे । किन्तु कालान्तर में वैज्ञानिक सत्य से धार्मिक सत्य में अन्तर आता गया । धार्मिक सत्य इस अर्थ में रूढ हो गया कि वह अपने निर्माणकाल की सभ्यता से चिपट कर रह गया और विज्ञान को नवीन उपलब्धियों के कारण सभ्यता में परिवर्तन हो गया । उदाहरणार्थ : दीपावली के समय तेल के दीपक जलाये जाते हैं । जिस समय दीपावली प्रथम बार मनाई गई होगी, उस समय या उस काल मे बिजली आविष्कार नहीं हुआ था, अतः तेल के दीपक जलाये गये थे । आज बिजली के दीपक ( गोलों के रूप में ) जलाये तो जाते हैं, किन्तु पूजा के अवसर पर या सांस्कृतिक क्षणों को उसी रूप में अनुभव करने के लिये तेल के दीपक जलाये जाते हैं । इनका महत्त्व सभ्यता की दृष्टि से नहीं है, किन्तु सांस्कृतिक दृष्टि से इनका बड़ा महत्व है । यह तो एक उदाहरण हुआ । हमारे बहुत से सांस्कृतिक कार्यो का विधान प्राचीन सभ्यता सम्बन्धित है और हम उन उन अवसरों पर आधुनिक सभ्यता को छोड़कर प्राचीन सभ्यता का
SR No.010027
Book TitleAadhunikta aur Rashtriyata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Bora
PublisherNamita Prakashan Aurangabad
Publication Year1973
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Social
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy