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________________ विचार-स्वातंत्र्य १७ एकदम बदली नहीं जा सकी । पुरानी व्यवस्था से लाभ उठानेवाले अधिकारी वर्ग ने सारे अधिकार अपने हाथ में कुछ फेरफार के साथ ज्यों-के-त्यों बनाए रखे । १८८१ ई० में शासक की हत्या कर दी गई। इसके बाद के शासक ने फिर पुरानी व्यवस्था को बनाए रखा । तात्पर्य यह है कि कानून बना देने मात्र से परिवर्तन नहीं हो जाता। इसके लिए जनता में उस प्रकार की भाव-भूमि और आस्था पैदा करने की आवश्यकता होती है और जब तक यह नहीं होगा तब तक विचार-स्वातंत्र्य संविधान में ही लिखा रहेगा। थामस पेन ने लिखा है-" मानव जाति का शासन करन वाली व्यवस्था का अधिकांश सरकार का कार्य नहीं है। उसका मूल समाज के सिद्धांतों एवं मनष्य की प्राकृतिक रचना में है। इस व्यवस्था का अस्तित्व सरकार से पहले का है और यदि सरकार का औपचारिक स्वरूप उठा दिया जाय तो भी वह बना रहेगा।" १ सच तो यह है कि समाज अपना बहुत-सा कार्य स्वयं कर लेता है। जिन स्थितियों में वह कार्य नहीं कर सकता वे स्थितियां सभ्यता के कारण निर्मित होती हैं। समाज के कानून लिखे नहीं होते, किन्तु उन कानूनों की शक्ति लिखित कानूनों से अधिक होती है और वे कानून सरकारी कानूनों से अधिक प्रभाव रखते हैं। समाज अपने लिए प्राय: वह सभी-कुछ कर लेता है जिसका श्रेय सरकार को मिलता है। विचारस्वातंत्र्य भी यदि इसी तरह सामाजिक जीवन का अंग बन जाएगा तो इससे समाज का उत्थान होगा और वह वास्तविक अर्थों में समाज को शक्तिशाली बनाते हुए राज्य और सरकार को भी शक्तिशाली बनाने में समर्थ हो सकेगा। समाज में अनेक संस्थाएँ होती हैं, समुदाय होते हैं। इनकी व्यवस्था में विचार-स्वातंत्र्य को स्थान मिलना चाहिए। विशेषतः इस प्रकार की व्यवस्था को सर्वप्रथम स्थान शिक्षा-संस्थाओं में मिलना चाहिए। क्योंकि विचारों को नई दिशा इन्हीं संस्थाओं द्वारा दी जाती है। यदि इन संस्थाओं में नवयुवकों को स्वतंत्र चिंतन विकसित करने का अवसर नहीं मिलेगा तो उनके जीवन की सक्रियता और सृजनशीलता का अंत हो जाएगा। बड रसेल ने ठीक ही लिखा है- “ शिक्षा का उद्देश्य निष्प्राण तथ्यों को निष्क्रिय जानकारी नहीं, बल्कि ऐसी क्रियाशालता होनी चाहिए जिसकी १. थॉमस पेन के राजनैतिक निबध-संपादक : नेल्सन एफ एडकिन्सअनुवादक : भागीरथ रामदेव दीक्षित, पब्लिकेशन्स प्रायवेट लिमिटेड, बंबई-१....पृ. १४३ ।
SR No.010027
Book TitleAadhunikta aur Rashtriyata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Bora
PublisherNamita Prakashan Aurangabad
Publication Year1973
Total Pages93
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Social
File Size10 MB
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