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________________ गीत लय गीत मवुर, लय गीत मधुर ! है, है कवि, तेरी मदिर ताल , झंकृत वीणाकी ध्वनि विशाल , मैं सुनकर आज हुआ निहाल , हाँ, हाँ, फिर गा दे एक बार वह गीत प्रत्रुर ! सन्निहित जगतका उदय अस्त , तेरी वह मादक ध्वनि प्रशस्त , मेरा जंगम जग अस्त-व्यस्त , वनकर स्वर लहरी मचल उठे, फिर वह आतुर ! हो पुनः तरंगित गीत रम्य , अपवाद आज फिर हो अगम्य , हो अन्त रहित यह तारतम्य , वीहड़में कुछ लहलहा उठे वन प्रेमांकुर ! ले मिला मिलाया सफल आज , विर लहरी गूंजे पुनः अाज , निर्माण नया हो स्वप्नराज , हो आलोकित मेरा निगान्त - जग अन्तःपुर ! - ७० - :
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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