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________________ पंडित जुगलकिशोर मुख्तार, 'युगवीर' श्री पंडित जुगलकिशोरजी मुख्तारने गत वर्ष जब अपने महान् आदर्शमूलक जीवनके छयासठवें हेमन्तमें प्रवेश किया तो सम्पूर्ण जैन समाज और साहित्यिक जगत्ने एक सम्मान समारोहका आयोजन करके उनकी सेवाओंके आगे हार्दिक श्रद्धाञ्जलि अर्पण की। इस साहित्य-तपस्वीके ६६ वर्षकी जीवन-साधनाने समाजकी वर्तमान पीढ़ी और भारतवर्षकी आगे आनेवाली सन्ततियोंके पथ-प्रदर्शनके लिए ऐसे प्रकाश-स्तम्भका प्रतिष्ठापन कर दिया है जो अक्षय और अटल होकर रहेगा या रहना चाहिए। आपकी साहित्यिक सेवाओं, शोध और खोजको अनवरत कार्य-धाराओं तथा पुरातत्त्व और इतिहासके विशाल ज्ञानको देश-विदेशके विद्वानोंने प्रामाणिकताको फसोटीपर कसकर उसे खरा सोना बताया है। किन्तु ये विद्वानों और मनीषियोंकी दुनियाँको वाते हैं। समाज या जन-समूहके जीवनसे उनका क्या संबंध है, यह समझनेके लिए जनताको अपने ज्ञानका घरातल ऊंचा उठाना होगा। सौभाग्यसे पंडित जुगलकिशोरजीके जीवन-कार्यको यह केवल एक दिशा है । ___समाजके सार्वजनिक जीवनकी दृष्टिसे जिस बातका सबसे अधिक महत्त्व है वह तो यही है कि पंडित जुगलकिशोरजी एक प्रमुख युग-प्रवर्तक हैं-धार्मिक क्षेत्रमें, सामाजिक क्षेत्रमें और साहित्यिक क्षेत्रमें। उन्होंने धार्मिक श्रद्धाको पाखंड-पिशाचके पंजेसे छुड़ाया है, समाजके सर्वाङ्गमें फैले हुए और प्राणों तक परिव्याप्त रूढ़ि-विषको निर्भीक पालोचनाके नश्तरसे निष्क्रिय कर देनेकी सफल चेष्टा की है, और साहित्य-फुलवाड़ीमेंजिसकी कि जमीन तक फटने लगी थी और जहाँके लोग सुगन्ध-दुर्गन्धकी पहचान ही भूले जा रहे थे-भावोंके सुरभित सुमन खिलाये हैं।
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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