SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महक उठा फूलोंसे उपवन . विघट गया तम तोम निशाका , उपा नटी उठ करके घाई; अलसाय अरुणाके दृग ले, कलिकाओंके सम्मुख आई। उन्हें जगाने हो हर्पित मन, महक उठा फूलोंसे उपवन । ऊपाके मृदु आलिंगनसे , कलियोंने भी आँखें खोली ; आलसका नय करनेके हित , आँखें ओसविन्दुसे धो ली। मुस्काये फिर दोनों आनन, महक उठा फूलोसे उपवन । दृश्य देख दोनों सखियोंका , नव प्रभातके रम्य पटलपर; सुरभित कलिकाओंसे मिलने, वायु, वेगसे आई चलकर। करने कलियोंका आलिंगन, महक उठा फूलोंसे उपवन । अपना तन सुरभित करनेको , लिपट गई खिलती कलियोंते; फिर गुंजित भ्रमरोंको देखा, हँसकर यह पूछा अलियोस'करते क्यों फूलोंका चुम्वन', महक उठा फूलोसे उपवन । - १८० -
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy