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________________ कोई क्या जाने, कोई क्या समझे ? ' प्रेमी प्रीतिमगे मनको कोई क्या जाने, कोई क्या समझे ! कविके पागलपनको कोई क्या जाने, कोई क्या समझे ! भावुक उन्मत्त हृदयकी थिरकनको, नत कुलके नयनोक तेरे अवर प्रकम्पनको निमन्त्रणको मूक कोई क्या जाने, कोई क्या समझे ! अति कुटिल गरलमें बुझी हुई अति सरल, सुवाने सींची सी मद-भरी अनोखी चितवनको कोई क्या जाने, कोई क्या समझे ! -रे कीट, ज्योतिका इक चुम्बन, उसपर प्राणोंकी बाजी ? आत्म-विसर्जनको कोई क्या जाने, कोई क्या समझे ! श्रांत-मिचौनीको -सुख-दुखकी -इस नक्की स्वप्न-मरीले " SO होनी-अनहोनीको जीवनको कोई क्या जाने, कोई क्या समझे !
SR No.010025
Book TitleAadhunik Jain Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRama Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1947
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Literature
File Size5 MB
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